ड्रैस कोड और महिला सुरक्षा का यह विषय या सवाल अपनेआप में भेदभावपूर्ण है. ड्रैस कोड तो हो लेकिन मात्र युवतियों के लिए ही क्यों, युवकों या पुरुषों के लिए क्यों नहीं? वैसे तो सार्वजनिक जीवन में कोई ड्रैस कोड होना ही नहीं चाहिए, जिस की जो मरजी पहने.

डै्रस कोड कहां और क्यों

कुछ सेवाएं ऐसी हैं, जहां ड्रैस कोड अनिवार्य है मसलन, सेना, पुलिस, चिकित्सा सेवाएं, स्कूलकालेज व कई मल्टीनैशनल कंपनियां.

जहां तक सेना व अर्द्धसैनिक बलों का सवाल है, तो वहां समान ड्रैस कोड लागू है. जो वरदी एक पुरुष सैनिक के लिए निर्धारित है, वही महिलाकर्मी के लिए भी है और यह उचित भी है. इस के विपरीत पुलिस सेवा में समान ड्रैस कोड होने के बावजूद महिला सिपाहियों को शर्टपैंट के साथसाथ खाकी साड़ी या सलवार सूट पहनने की भी छूट है, जोकि उचित नहीं है.

चिकित्सा सेवाओं में भी नर्सों के लिए वरदी (विशेषकर सफेद) तय है और चिकित्सकों (पुरुष व महिला दोनों) के लिए भी नियत वरदी है.

स्कूलों में भी विद्यार्थियों के लिए वरदी तय है. लड़कों के लिए तो शर्टपैंट ही निर्धारित है लेकिन लड़कियों के लिए सलवारसूट की छूट है. यहीं से भेदभाव की शुरुआत होती है.

स्कूली शिक्षा तक दोनों के लिए ड्रैस कोड लगभग एकसमान तय है, लेकिन उस के बाद (कालेज स्तर पर) लड़कियों को साड़ी या सूट पहनने को मजबूर किया जाता है जबकि पारंपरिक नजरिए से देखा जाए, तो लड़कियों को साड़ी या सलवारसूट के बदले लड़कों को धोतीकुरता या पाजामाकुरता पहनना चाहिए, लेकिन तथाकथित संस्कृति के ठेकेदार (खाप पंचायतें व मुल्लामौलवी) इस तरह के फरमान जारी नहीं करते. उन के सारे फरमान व फतवे युवतियों के खिलाफ ही जारी होते हैं और युवक तो मानो ‘दूध के धुले’ होते हैं.

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