सलोनी. हां यही नाम था उस सौंदर्य की सौम्य मूर्ति का, जो अपनी व्यथा कथा सुना कर मुझे स्तब्ध कर चुकी थी. मेज पर पड़ा कागजों का पुलिंदा, राइटिंग पैड और 2 खूबसूरत पैन ऐसे लग रहे थे जैसे सलोनी के साथ वे भी आग्रहपूर्वक मुझे निहार रहे हों.
सलोनी के एकएक शब्द ने मुझे झकझोर कर रख दिया था. ‘आप एक वकील हैं. बताइए कि क्या और कोई तरीका है मेरी समस्या के समाधान का?’
सलोनी अपनी भावनाओं के तीव्र प्रवाह में मुझे बहा ले गई. मैं बिना हिलेडुले उस का कहा एकएक शब्द ध्यान से सुन रही थी.
‘तलवार की चोट से कलम की चोट ज्यादा मारक होती है. आप जो भी मामला बनाएंगी उस में इस बात का खुलासा कर देंगी न?’ आंखों में जिज्ञासा भर उस ने मासूमियत से पूछा था. मैं ने आंखों ही आंखों में उस के सवाल का जवाब दे दिया था.
मेरे दिलोदिमाग में कशमकश चल रही थी. किंतु विषय ही कुछ ऐसा था, जो बारबार मामला डिक्टेट कराने में हिचकिचा रहा था.
आकर्षक और मोहक व्यक्तित्व की धनी सलोनी का विवाह तय होते ही घर भर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. सुर्ख जोड़े में सजीसंवरी, हाथों में पिया के नाम की मेहंदी लगा कर, पलकों में सुनहरे सपने संजोए सलोनी मातापिता का घर छोड़ पिया के घर जा पहुंची थी. खुशी से इतराती, इठलाती, मुसकराती वह बांहें फैला कर पूरे आकाश को अपने आंचल में समेट लेना चाहती थी. शादी के बाद की पहली रात में वह प्यार की बरसात में नहा गई थी.
सूरज आकाश में पूरी तरह छा गया था, लेकिन समीर की बांहों में सिमटी सलोनी गहरी नींद में थी. दरवाजे पर हो रही दस्तक को सुन कर सलोनी की आंखें खुलीं तो उस ने तुरंत खुद को व्यवस्थित कर दरवाजा खोला तो बाहर ननद मानसी चाय की ट्रे लिए खड़ी थी.
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