‘पिंक’, ‘नाम शबाना’ और ‘मुल्क’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी अदाकारा तापसी पन्नू इन दिनों 14 सिंतबर को प्रदर्शित हो रही आनंद एल राय निर्मित और अनुराग कश्यप निर्देशित फिल्म ‘‘मनमजियां’’ को लेकर उत्साहित हैं. प्रस्तुत है उनके करियर, फिल्म ‘मनमर्जिया’ और प्यार को लेकर हुई उनसे एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

आप अपने आठ नौ वर्ष के करियर में टर्निंग प्वाइंट्स क्या मानती हैं?

मेरे करियर का सबसे बड़ा व पहला टर्निंग प्वाइंट तो दक्षिण भारत में पहली फिल्म के रूप में वहां के स्टार कलाकार धनुष के साथ तमिल भाषा की बड़े बजट की फिल्म ‘‘आदुकलम’’ का मिलना ही था. तो मेरा टर्निंग प्वाइंट ‘‘आदुकलम’’ ही थी. यदि यह फिल्म न मिलती, तो मैं अभिनय को करियर न बनाती. उससे पहले अभिनेत्री बनने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी. इस फिल्म के मिलने और इसकी सफलता के बाद मेरे मन में अभिनेत्री बनने की इच्छा जागृत हुई थी. उससे पहले तो मैं सिर्फ टाइम पास कर रही थी. मेरे करियर में दूसरा टर्निंग प्वाइंट तब आया, जब मुझे पहली हिंदी फिल्म ‘‘चश्मेबद्दूर’’ मिली. उस वक्त मैं बहुत खुश हुई थी कि मुझे बिना किसी प्लानिंग और तैयारी के हिंदी फिल्मों में प्रवेश मिल गया. उसके बाद टर्निंग प्वाइंट रही फिल्म ‘‘पिंक’’. वैसे मैं इस बात को लेकर कंफ्यूज हूं कि ‘बेबी’ और ‘पिंक’ में से किसे मैं लैंडमार्क मानूं. क्योंकि फिल्म ‘बेबी’ में मेरे दस मिनट के किरदार को भी लोगों ने काफी सराहा था, जिसके चलते मुझे ‘‘नाम शबाना’’ मिली थी. लेकिन फिल्म ‘‘पिंक’’ के आते ही लोगों को अचानक लगा कि तापसी तो बेहतरीन अभिनय कर सकती है. तो यही टर्निंग प्वाइंट रहे. मगर मेरे करियर का सर्वश्रेष्ठ वर्ष 2018 ही साबित हो रहा है. फिल्म ‘‘मुल्क’’ के प्रदर्शन के बाद मुझ पर लोगों का यकीन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. अब लोगों को लगने लगा है कि यह हर किरदार को कुछ अलग ढंग से परदे पर निभा जाती है. अब यही बात यदि 14 सितंबर को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘मनमर्जिया’’ से पक्की हो जाए, तो मेरे करियर का सर्वश्रेष्ठ वर्ष 2018 ही होगा.

फिल्म ‘‘मुल्क..’’ का रिस्पांस क्या रहा?

इतना नही आज ही एक पत्रकार ने चार पांच लोगों से ‘मुल्क’ को लेकर बात करके मुझ पर फिल्म ‘‘मुल्क’’ के संदर्भ में लंबा चौड़ा लेख लिखा है. आप भी जानते हैं कि हमारे पास प्रचार पर खर्च करने के लिए धन नहीं है. फिर भी कुछ पत्रकारों ने आगे बढ़कर इस फिल्म को सराहते हुए काफी कुछ लिखा है.

हर कलाकार सोचता है कि जब वह अभिनय से रिटायर हो जाए, तो कम से कम एक फिल्म ऐसी होनी चाहिए, जिसे मेरे साथ पूरा संसार देखना चाहे. मैं तो खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि इस तरह की फिल्मों में ‘‘पिंक’’ और ‘‘मुल्क’’ मेरी यह दो फिल्में हो गयी हैं. वैसे मैं स्पष्ट कर दूं कि अभिनय से रिटायरमेंट लेने का अभी मेरी कोई मंशा नही है. मैं तो चाहती हूं कि मेरे अभिनय की गाड़ी इसी तरह चलती रहे. मैं रिटायरमेंट के बारे में तो सोच ही नहीं रही हूं.

फिल्म ‘‘पिंक’’ के समय आपने अमिताभ बच्चन को वकील के किरदार में देखा हुआ था. जब आप ‘‘मुल्क’’ में वकील बनीं, तो उससे कुछ मदद मिली?

मेरे लिए वह बेंचमार्क था. मेरे दिमाग में यह था कि अमिताभ सर ने जो किया है, मैं उसके आस पास भी पहुंच गयी, तो मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. यही सोचकर मैंने अपने किरदार को निभाया.

‘‘मुल्क’’ देखकर अमिताभ बच्चन ने क्या कहा?

वह फिल्म ‘ब्रम्हास्त्र’ की शूटिंग के सिलसिले में बल्गेरिया जा रहे थे, इसलिए उन्हें समय नहीं मिला. पर मैंने उनसे निवेदन किया है कि वह मेरी फिल्म देखें.

आपको नहीं लगता कि दर्शक आपको संजीदा किरदारों में ज्यादा पसंद कर रहे हैं?

मुझे यह बात पसंद आयी कि लोग मुझे सीरियसली ले रहे हैं. मैं यहां टाइमपास करने नही आयी हूं. मैं कुछ ढंग का काम करने आयी हूं. यदि मैं कौमेडी करुंगी, तो वह भी ढंग की करुंगी, जो कि देखने लायक हो. मसलन जिस तरह की फिल्म ‘मनमर्जिया’ है. फिल्म ‘मनमर्जिया’ एक इंटेंस लव स्टोरी है, मगर मेरा किरदार रूमी बीच बीच में कुछ ऐसा फनी चीजें बोल देता है कि लोगों को हंसी आनी ही है. निजी जिंदगी में मेरे कुछ बड़े ओपिनियन हैं. निजी जिंदगी में मुझे कुछ चीजें पसंद हैं, कुछ चीजे नहीं पसंद हैं. पर मैं सिर्फ पसंदीदा चीजों पर ही नहीं, बल्कि नापसंदगी वाली चीजों पर भी बात करुंगी. इसका मतलब यह नहीं कि मैं निजी जिंदगी में फनी नही हूं. मैं अपने अहसास को फनी तरीके से भी कह सकती हूं. मैं इंटेंस चीजें फनी तरीके से भी बोल सकती हूं. पर जो भी बोलूंगी, वह मतलब की होगी. उसका सेंस होगा. फनी की परिभाषा ‘ब्रेन लेस जोक्स’ यानी कि ‘दिमाग घर पर रखकर सुने जाने वाले जोक्स’ नहीं होता. क्योंकि वह वही करेगी, जो उसके मन में आएगा.

‘‘मनमर्जिया’’ के निर्देशक अनुराग कश्यप की पहचान ‘‘डार्क’’ फिल्म बनाने वालों में होती है. तो उनके निर्देशन में इस फिल्म को करने से पहले कोई हिचक थी?

नहीं..हिचक कैसी. भरोसे का है. देखिए, अनुराग कश्यप डार्क फिल्म बनाने वाले और फिल्म के निर्माता आनंद एल राय रोमांटिक व संजीदा फिल्म बनाने वाले हैं. इन दोनों का मिश्रण बहुत रोचक हो सकता है, इसी सोच के साथ मैंने यह फिल्म की. दूसरी बात जब मैंने फिल्म की पटकथा सुनी, तो मेरी समझ में आ गया कि मुझे यह फिल्म क्यों आफर की गयी. वैसे भी अनुराग कश्यप कहते हैं कि फिल्म ‘मनमर्जियां’ की रूमी मैं ही हूं. उनके अनुसार मेरी निजी जिंदगी के करीब यदि कोई किरदार हो सकता है, तो वह रूमी का ही होगा.

इस फिल्म में एक हिस्सा ऐसा है, जिससे मैं सहमत नहीं हूं. मैंने यह बात लेखक से भी कही. मैंने उससे कहा कि तापसी के तौर पर मुझे यह पसंद नहीं है, तो ऐसे में मुझे करना चाहिए या नहीं. इस पर लेखक ने मुझसे कहा कि यदि फिल्म में यह हिस्सा न हो, तो फिर आपके लिए चुनौती क्या होगी? मुझे उसकी यह बात अच्छी लगी. यदि यह बात फिल्म में न होती, तो मेरे लिए इस फिल्म में अभिनय करना बहुत आसान होता. मेरे लिए चैलेंजिंग वही हिस्सा था कि जिसे तापसी नहीं मान रही है, जिस पर तापसी यकीन नहीं करती. ऐसे में क्या मैं उसे परदे पर साकार कर पाउंगी और दर्शक उसे पसंद करेंगें. क्योंकि अंततः मैं इस फिल्म की प्रोटोगानिस्ट हूं. फिर मैंने यह फिल्म की, क्योंकि इस फिल्म के साथ आनंद एल राय और अनुराग कश्यप का नाम जुड़ा हुआ है. मुझे लगा कि  इससे बेहतर क्या हो सकता है. मुझे इन दोनों पर भरोसा था कि कहीं कुछ गड़बड़ होगी, तो यह संभाल सकते हैं. मुझे लगा कि ऐेसे में मैं यदि आज चुनौती स्वीकार नहीं करुंगी, तो कब करुंगी.

वह हिस्सा क्या है?

उसी के लिए फिल्म देखनी पड़ेगी. प्रेम कहानियां तो सब एक जैसी होती हैं. मगर इसमें कुछ मोमेंट हैं, जो इसे अलग बनाते हैं.

फिल्म ‘‘मनमर्जियां’’ के किरदार को कैसे परिभाषित करेंगी?

मेरे किरदार का नाम रूमी है, जो कि पंजाब की लड़की है, पर इसे परिभाषित करना आसान नहीं है. रूमी एक ऐसी लड़की है, जिसके बिना आप रह नहीं सकते, मगर उसके साथ रहना भी आसान नहीं. वह सोचने से पहले बोलना शुरू करती है. उसके दिल में जो होता है, वह उसके चेहरे पर आ जाता है. रूमी एक ऐसी लड़की है, जिसके पीछे दो युवक पड़े हुए हैं. पर रूमी खुद दुविधा में है कि वह किसका प्यार स्वीकार करे. वह कन्फ्यूजन में है कि ‘पैशन’ और ‘सुरक्षा’ में से किसे स्वीकार करे.

पर आपको नहीं लगता कि वर्तमान पीढ़ी की लड़कियां प्यार या रिश्ते को लेकर बहुत ज्यादा कंफ्यूज हैं?

जी हां! ऐसा ही है. वही तो इस फिल्म में दिखाया गया है. मैं तो ऐसी बहुत सी लड़कियों को जानती हूं. निजी स्तर पर यह मुझमें नहीं है, इसलिए इस बात को समझने में मुझे तकलीफ हो रही थी. जबकि मैं ऐसी लड़कियां को निजी स्तर पर जानती हूं, जिन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि यह प्यार है या कुछ और. उन्हें यह समझ मे नही आता कि प्यार का मतलब स्टेबीलिटी/स्थायित्व होता है या दिमाग से सोचकर रिश्तें बनाए जाते हैं या दिल की सुनकर रिश्ते बनाए जाते हैं. अब वह ऐसी क्यों हैं, इसका लौजिक मुझे आज तक समझ में नहीं आया. मेरी जिंदगी तो एकदम ब्लैक एंड व्हाइट है.

वर्तमान पीढ़ी की लड़कियों के कंफ्यूज होने की वजह मुझे यह समझ में आती है कि आज की तारीख में बंदिशें नहीं हैं कि समाज क्या कहेगा? परिवार के लोग क्या कहेंगे? माता पिता क्या कहेंगे? इसके लिए लड़की के सामने कई विकल्प मौजूद हैं. आज के जमाने में हर इंसान सबसे पहले अपने बारे में सोचता है. सभी के लिए उनकी अपनी खुशी मायने रखती है. इसी के चलते अब रिश्तों में काफी बदलाव आ गया है, कंफ्यूजन आ गया है.

पर हम अपनी खुशी की तलाश में रिश्तों को बरकरार रखने के लिए आवश्यक समझौता करना भूल गए हैं?

सच है. पर हम कौन होते हैं, यह तय करने वाले कि वह सही हैं या गलत. अब विकल्प ज्यादा हैं. सभी को पता है कि हमारे पास एक ही जिंदगी है, तो अब वह समझौते नहीं करना चाहते. अंत में उनके लिए यही बात मायने रखती है कि उन्हें क्या खुशी देता है. यदि आप खुश नही हैं तो समझौता करके भी तुम सामने वाले को खुशी नहीं दे पाओगे. इससे बेहतर है कि उससे अलग हो जाया जाए. दो लोगो की खुशी खराब करने की बनिस्बत कड़वा निर्णय लेकर अलग हो जाना चाहिए.

आपके लिए प्यार क्या मायने रखता है?

सच कहूं तो प्यार की सही परिभाषा तो मुझे भी नहीं पता. मेरी राय में तो कोई भी इंसान प्यार को सही मायनों में परिभाषित नहीं कर सकता. मुझे यह पता है कि जो चीज समय के साथ अगर बदले, तो तुम्हारे साथ साथ बदले. यानी कि तुम्हारे बदलने के साथ ही तुम्हारे प्यार की परिभाषा भी बदलती है. लेकिन जिस इंसान से तुम प्यार कर रहे हो, वह चाहे तुम्हारा पार्टनर हो, चाहे प्रेमी हो या परिवार का कोई सदस्य ही क्यों न हो, उसके प्रति तुम्हारे अहसास कम नही होने चाहिए, वही प्यार है. जो बार बार बदलता रहे, वह प्यार नहीं है. जो ज्यादा समय तक टिक कर न रहे, वह प्यार कभी होता ही नहीं है.

आपको तो प्यार मिल गया?

मैं आशा करती हूं कि मुझे मेरा प्यार मिल गया हो. अरे, अभी जिंदगी खत्म थोड़े ही हुई है. क्या पता कि अगले माह मुझे कोई नया अहसास हो जाए, किसी को क्या पता कब क्या हो? मैं वर्तमान में जी रही हूं. फिलहाल सब कुछ अच्छा लग रहा है. एकदम परफैक्ट लग रहा है, पर आगे जाकर क्या होगा, इसका दावा तो नहीं कर सकती. किसी की गारंटी कौन ले सकता है. मैं जानती हूं कि अभी तो सब कुछ सही चल रहा है. मैं यह कह कर नजर नहीं लगाना चाहती कि मुझे प्यार मिल गया और एकदम परफैक्ट है. नजर लगते ही कल को कुछ और हो जाए. इससे अच्छा है कि ऐसी बात करो, जिससे नजर न लगे.

उन्होंने आपकी फिल्में देखीं या नहीं..उनकी क्या प्रतिक्रिया रहती है?

अगर आप मैथास (डेनमार्क के बैंडमिंटन खिलाडी मैथास बोय) की बात कर रहे हैं, तो मैं बता दूं कि मैं निजी जिंदगी को लेकर बात नहीं करना चाहती.

आप निजी जिंदगी की बातें न बताएं..मगर …?

ठीक है….मैं बताना चाहूंगी कि मैं मैथास के सभी मैच देखती हूं. वह भी मेरी सभी फिल्में देखते हैं. उनकी प्रतिक्रिया ज्यादातर अच्छी ही होती हैं. उनको मेरी कुछ फिल्में बहुत अधिक समझ में आती हैं, कुछ ज्यादा समझ में नहीं आती हैं. लेकिन उसने मुझसे कभी यह नहीं कहा कि क्या बकवास फिल्म है या क्या बकवास परफार्मेंस है. मगर उन्हें मेरी कौन सी फिल्म कितनी पसंद आयी, यह तो वही जाने या भगवान जाने. हम जब मिलते हैं, तो एक दूसरे के काम को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं करते हैं. मैं जब उन्हें नहीं बताती कि उन्हें किस तरह खेलना चाहिए, तो वह मेरे अभिनय को लेकर क्या टिप्स देंगे? उन्हें न मुझे टिप्स देनी है और न उन्हें मुझसे टिप्स चाहिए.

आप किस तरह के किरदार करने के बारे में सोच रही हैं?

मै दोहराव तो पसंद नहीं करती. मैं खुद को कभी दोहराउंगी नहीं. मैंने ‘पिंक’ में यौन शोषण की शिकार लड़की का किरदार निभा लिया, अब दुबारा वही किरदार मिले, तो मैं नहीं करुंगी. क्यों कि जो एक चीज बन गयी है और जिसे लोग क्लासिक मानते हैं, उसे मैं खराब नहीं करना चाहती. ‘नाम शबाना’ के बाद मेरे पास ‘अंडर कवर’ एजेंट के इतने किरदारों के आफर आए कि बता नहीं सकती. मैंने सारे ठुकरा दिए. मैंने लोगों से कहा कि तुम ‘बेबी’ या ‘नाम शबाना’ से बढ़कर कुछ बना सकते हो, तो मेरे पास आओ. मैं तब तक वकील का किरदार नहीं निभा सकती, जब तक मुझे नहीं लगेगा कि यह फिल्मकार ‘मुल्क’ से बढ़कर कुछ कर सकता है. जो चल गया है, उसकी दुकान नहीं खोलनी है. आगे चलकर भी मैं वही पटकथाएं चुनूंगी, जिन्हें पढ़कर मुझे अहसास होगा कि जब दर्शक अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे से टिकट खरीदेगा, तो उसकी कीमत उसे वसूल होगी. उसके तीन घंटे बर्बाद नहीं जाएंगे. उसे मनोरंजन मिलेगा.

इन दिनो बायोपिक फिल्मों का दौर चल रहा है ?

जरुर करना चाहूंगी. मुझे तो बायोपिक फिल्में देखना पसंद है. वास्तविक कहानियों से बढ़कर कोई कहानी हो ही नहीं सकती. मुझे खेलों में काफी रूचि है, तो चाहूंगी कि कोई खेलों पर बायोपिक फिल्म मिले.

आप सोशल मीडिया पर काफी व्यस्त रहती हैं. आपको भी ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा होगा?

ट्रोलर तो मेरे करीबी मित्र हैं. वह मुझे लोकप्रिय बनाने के लिए अपना समय लगाते हैं. जब हम ट्रैफिक में फंसे होते हैं, तो हम इन ट्रोलर्स को पकड़ लेते हैं और फिर मैं इन्हे ऐसा जवाब देती हूं कि मेरे जो वास्तविक फालोअर्स हैं, वह इंज्वाय करें, उन्हे मेरे अंदर कौमिक सेंस नजर आता है.

आपको नहीं लगता कि सोशल मीडिया स्टारडम को नुकसान पहुंचा रहा है?

यह तो कलाकार पर निर्भर करता है कि आप सोशल मीडिया का उपयोग किस तरह से कर रहे हैं. यह कलाकार पर निर्भर करता है कि आप सोशल मीडिया पर कितनी दूरी और कितना रहस्य बनाकर रखना चाहते हैं.

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