हिंदू देवियां पुस्तक प्रकाशकों के लिए विज्ञापन व प्रचार का काम भी करती हैं. एक उदाहरण छपा है साहित्य संगम, सूरत से प्रकाशित वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की पुस्तक के पृष्ठ 19 पर. माजरा समझ में आ जाएगा. इस में शीला नाम की एक महिला को साक्षात लक्ष्मी मां ने कहा कि व्रत का उद्यापन होने पर उसे 7 कुंआरी कन्याओं को तिलक लगा कर साहित्य संगम प्रकाशन की ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ कथा की एकएक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए. प्रकाशक महोदय से पूछा जा सकता है कि इस तरह का प्रचार लक्ष्मी मां से कराने के लिए खुद उन्होंने कितने व्रत रखे थे?

आप को शायद अब मेरे कहने का मंतव्य समझ में आ रहा होगा, व्रतउपवासों के मकड़जाल में फंसे हुए लोग इस बात की जहमत नहीं उठाते हैं कि जो व्रत वे रख रहे हैं उस की पुस्तिका को ढंग से पढ़ कर उस का मनन कर सकें. वैभव लक्ष्मी व्रत कथा शुरू से अंत तक सिर्फ भोलेभाले लोगों को दिग्भ्रमित करने के अलावा कुछ नहीं करती है.

शुक्रवार व्रत कथा : सचाई से दूर केवल कथा मात्र

अपनेआप में वैभव लक्ष्मी व्रत कथा केवल एक कथा भर है जिस में सचाई का तनिक भी अंश नहीं है. यह बात एक औसत स्तर का पाठक भी इस व्रत कथा की पुस्तिका को पढ़ कर समझ सकता है. कहानी की पात्र शीला नाम की एक महिला है, जो अपने पति की गलत आदतों के कारण आर्थिक परेशानियों से घिरी हुई है. शीला बहुत धार्मिक महिला है और हर रोज मंदिर जा कर पूजाआरती करती है. एक दिन उस के घर एक महिला आती है जो शीला के दुख का कारण पूछती है.

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