पहले जहां छोटे और बड़े घरों के लिए बजट के हिसाब से इंटीरियर का अलगअलग पैमाना होता था, वहीं अब बजट की जगह केवल जगह से समझौता होता है. 12 सौ स्क्वेयर फुट के छोटे मकान में अगर किचन 100 स्क्वेयर फुट में बनती है, तो 3 हजार स्क्वेयर फुट के मकान में 3 सौ स्क्वेयर फुट में बनती है. किचन में नए जमाने की मौड्यूलर किचन की ही फिटिंग का प्रयोग होता है. फर्क केवल यह होता है कि जरूरत और बजट के हिसाब से इंटीरियर में लगने वाले सामान के साइज में फर्क आ जाता है. अगर कम बजट में ग्रेनाइट का प्रयोग किया जाता है, तो ज्यादा बजट में कोरियर सिंथैटिक का प्रयोग होता है.

बात केवल किचन की ही नहीं है बाथरूम, बैडरूम, लौबी, टैरिस, लौन सभी जगह ऐसे प्रयोग किए जा रहे हैं.

लखनऊ की इंटीरियर डिजाइनर और प्रतिष्ठा इनोवेशंस की डाइरैक्टर प्रज्ञा सिंह कहती हैं, ‘‘अब घरों में इंटीरियर का काम बहुत बढ़ गया है. आज के समय में घर बनाने के लिए अच्छी टैक्नोलौजी और उस में प्रयोग होने वाली सामग्री आसानी से मिलने लगी है.’’

टैक्नोलौजी से भरपूर इंटीरियर

आर्किटैक्ट प्रज्ञा सिंह आगे बताती हैं, ‘‘छोटे ही नहीं बड़े घरों में भी अब ओपन जगह ज्यादा छोड़ने का चलन बढ़ रहा है. इस में एक तो घर के खर्च को कम किया जा सकता है और दूसरे रखरखाव में भी परेशानी नहीं होती. ओपन जगह का लाभ यह होता है कि भविष्य की जरूरत के लिए आप के पास जगह खाली होती है, जिस में कभी भी नया निर्माण बदलती जरूरत के हिसाब से किया जा सकता है.

‘‘नए जमाने के इंटीरियर में लोग टैक्नोलौजी नवीनतम और लुक ऐंटीक चाहते हैं. ओपन लौन में एक तरफ लोग हिल्स का लुक देता फाउंटेन और यूरलवर्क पसंद करते हैं तो दूसरी तरफ कांच से तैयार ऐसी जगह भी चाहते हैं जहां पर एसी का मजा ले सकें.

‘‘इसी तरह किचन में मौड्यूलर किचन के साथ ही ऐंटीक रसोई लुक भी चाहिए होता है. घर का हर कोना कैमरे की नजर में चाहिए. फायर से बचाव के लिए सिस्टम चाहिए. आजकल लोग घरों का इंटीरियर भी होटलों जैसा चाहते हैं. ऐसे में टैक्नोलौजी और ऐंटीक लुक का तालमेल इंटीरियर को खास बनाने लगा है.’’

काम ज्यादा जगह कम

इंटीरियर में सब से अधिक ध्यान इस बात पर दिया जा रहा है कि कम से कम जगह को बड़ी से बड़ी जगह की तरह दिखाया जाए.

पुराने लुक को कम बजट में नया कैसे किया जाए? यह पूछने पर प्रज्ञा सिंह बताती हैं, ‘‘घरों के इंटीरियर में वौल पेपर का प्रयोग बढ़ गया है. इस में थीम बेस्ड वौल पेपर आने लगे हैं. कुछ वौल पेपर कस्टमाइज होने लगे हैं. इन में आप अपनी पसंद की डिजाइन, कोटेशन या किसी खास अवसर का अपना फोटो तक प्रिंट करा सकते हैं. पहले घरों की पुताई त्योहार या शादीविवाह के पहले करा कर उस के लुक को बदला जाता था, मगर अब केवल वौल पेपर ही बदल कर नया लुक तैयार किया जाने लगा है. इस के लिए एक दीवार को खाली छोड़ दिया जाता है. इस पर वौल पेपर के बदलने से पूरे कमरे में नए लुक का एहसास होने लगता है. बजट और परेशानी को देखें तो वौल पेपर के बदलने में बहुत खर्च और परेशानी नहीं होती है.

‘‘किचन, बैडरूम और लौबी में भी ग्लास की दीवार का प्रयोग होता है, जिस से जगह अधिक दिखती है साथ ही प्राइवेसी भी बनी

रहती है. ग्लास की दीवारों पर परदों का प्रयोग होने से प्राइवेसी भी बनी रहती है. ग्लास की दीवारें जगह कम घेरती हैं, जिस से घर में खुलापन दिखता है. ग्लास की दीवारों से खुलेपन में नैचुरल फीलिंग आती है. बाहर हराभरा माहौल दिखाने के लिए पेड़पौधे प्रयोग किए जाते हैं.

‘‘कई बार लोग आर्टिफिशियल घास और पेड़पौधों का भी प्रयोग करते हैं. शीशे की दीवार से इन्हें देखना अलग एहसास देता है. आज इंटीरियर में हर चीज मौजूद है. इंटीरियर अब स्टेटस सिंबल में बदल चुका है.’’

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