विश्व के किसी भी कोने में जाइए, लगभग हर जगह मानव समाज किसी न किसी भगवान से जकड़ा हुआ है. मानव जब पाषाण युग में था तब कोई भगवान नहीं था. सब को अपना भोजन खुद जुटाना पड़ता था. प्रकृति का पहला नियम जीवित रहने के लिए अपना पेट भरना है. यह सच भी है क्योंकि प्रकृति का हर प्राणी रातदिन स्वयं का पेट भरने में जुटा रहता है. यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है.
बस, इसी पेट भरने की इच्छा ने ‘भगवान’ की उत्पत्ति की है. पाषाण युग के पश्चात मानव व्यवस्थित होने लगा. तब उस के सामने भोजन की बड़ी समस्या थी, कठोर परिश्रम करना पड़ता था. हर कोई इस में सक्षम हो, ऐसा नहीं था. प्रकृति में मानव ही ऐसा जीव है जो अपनी बुद्धि का विकास कर सकता है. एक मेहनत करे और दूसरा बैठेबैठे खाए वह भी जीवन भर.
धूर्त, खुदगर्ज, कामचोर और ठग प्रवृत्ति वालों ने भगवान की उत्पत्ति कर सरल, सीधे लोगों को डराधमका कर ईश्वरीय शक्ति (इन के द्वारा प्रदत्त) को मानने को विवश किया ताकि वे बिना मेहनत के भोजन व सम्मान के अधिकारी बने रहें. इन के अनुसार प्रकृति की हर घटना भगवान की लीला है चाहे भूकंप आए, आंधीतूफान आए, बाढ़ आए या बीमारी. अत: यह कहने में थोड़ा भी संकोच नहीं.
‘भगवान’ ने इनसानों को पैदा नहीं किया बल्कि इनसानों ने भगवान को पैदा किया. उसे शक्तियों से महिमामंडित किया, केवल इसलिए कि उन की दालरोटी बिना मेहनत के चलती रहे. विश्व में मानव जीव सर्वशक्तिमान है भगवान नहीं क्योंकि मिनटों में कोई भगवान पैदा कर देना इनसान के ही बस की बात है. आज भारत में लाखों देवीदेवता हैं और सभी धूर्त मानव की देन हैं. मिथ्या साहित्य की रचना कर श्राप और वरदान का ढोंग रचा गया, मानो इनके श्राप व वरदान से प्रकृति के नियम बदल जाएंगे.
मनगढ़ंत : कैसेकैसे ऐसे ढोंगी लोगों को स्वर्गनरक की कहानी गढ़ कर अपनी सेवा करवाने में थोड़ी भी शर्म नहीं है. इन की खासीयत लच्छेदार बातें करने भर की है. हर भगवान लंबीचौड़ी हांकने का काम बखूबी कर सकता है, चाहे वह जीसस हो, कृष्ण या बुद्ध. लोकपरलोक में पुण्य कमाने की लालसा जगा कर ये मानव को आदिकाल से ठगते आ रहे हैं.
बड़े मजे की बात है कि इन के ठगने की कला में विचित्रता जरूर होगी. एक उदाहरण देखिए :
गणेश ने मानव शरीर धारण किया था लेकिन उन का सिर हाथी का था. कहां मानव के गले की परिधि और कहां हाथी के सिर की परिधि. ऊपर से इन कथित भगवान में शक्ति थी जो दूसरे जीव को बिना मारे भी जिंदा कर सकते थे. यह सब धर्माचार्यों का कमाल है. कहीं मानव का तन और सिर सिंह का, कहीं 10 हाथ तो कहीं 10 सिर. महाभारत में धृतराष्ट्र को अंधा क्यों रहने दिया गया? यहां शक्ति दिखाने की बात छोडि़ए, कम से कम वरदान दे कर ज्योति तो देते. रामायण में हनुमान द्वारा मुंह में सूर्य को रख लेने का उल्लेख है. वास्तव में सूर्य कितना बड़ा है उन्हें मालूम ही नहीं था. भगवान की शक्ति को स्थापित करने के लिए कुछ ऊटपटांग व विचित्र होना तो जरूरी था.
उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि कोई भी जीव सांस द्वारा आक्सीजन लेता है जो जीवित रहने के लिए जरूरी है अन्यथा शरीर की सारी प्रक्रिया बंद हो जाएगी, यानी जीव मृत हो जाएगा, लेकिन ये ढोंगी कहेंगे कि आत्मा ने शरीर को छोड़ दिया. हमारे देश में साधुसंत होना बड़प्पन की बात मानी जाती है. वास्तव में ये एक नंबर के ठग, दुराचारी, आलसी, कामचोर अपने सामाजिक उत्तरदायित्व से मुक्त हो कर भगवान का नाम ले मेहनत करने वालों का हिस्सा हजम करते हैं.
विश्व के सभी धर्मों का यही हाल है. बिना विचित्रता के भगवान की लीला कैसी, जीसस क्राइस्ट ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि आने वाले समय में उस के नाम से लोग प्रार्थना करेंगे, धर्मपरिवर्तन करेंगे, वह भी केवल पैसा बटोरने के लिए. जब काम करेंगे तभी तो पैसे की हेराफेरी कर सकते हैं. वैसा ही हाल पैगंबर हजरत मोहम्मद का है. उन्होंने भी कभी नहीं सोचा होगा कि उन के अनुयायी अल्लाह के नाम पर मारकाट की प्रेरणा देंगे, यह कह कर कि खुदा ने तुम्हारे लिए जन्नत में सुरासुंदरी का इंतजाम कर रखा है और अंधविश्वासी लोग बिना सोचेसमझे मरनेमारने को तैयार हो जाते हैं. वे यह भी नहीं सोचते कि अगर ऐसी बात होती तो इमाम, मुल्ला व मौलवी खुद फिदायीन बनने से क्यों पीछे रहते?
हिंदू धर्म में ‘मनु’ को आदिमानव कहा गया है तो यह भी कहना पडे़गा कि निकृष्टता भी उन्हीं से शुरू हुई. धर्माचार्य (सभी धर्मों के) समाज के हर कार्यकलाप में हस्तक्षेप रखते हैं ताकि इन की मांग लगातार बनी रहे. पीढ़ी दर पीढ़ी इन की पौबारह रहे. पूजापाठ और भगवान के नाम पर ये भोग भी लगाएंगे, यानी पेटपूजा की पूरी व्यवस्था कर रखी है.
ये ‘ढोंगी’ बीचबीच में धार्मिक आयोजन जैसे कुंभमेला आदि करते रहेंगे ताकि इन की डिमांड बनी रहे और लोग भगवान को भूलें नहीं. हिंदू धर्म में भगवानों की सीरीज चलती रहती है. अवतार के नाम पर आखिर एक ही कहानी का टेप कितने दिन चलाएंगे. मिथ्या साहित्य से अंध- विश्वास फैलता है. भारत में इस की भरमार है. अब देखिए न, पूर्वजन्म का फल बता कर क्या ये ढोंगी बता पाएंगे कि महात्मा गांधी को गोली से और जीसस क्राइस्ट को सूली पर क्यों चढ़ाया गया.
प्रकृति के सामने किसी के भगवान की कुछ नहीं चली. सभी प्रकृति की गोद में समा गए. सुनामी के कहर से किसी के भगवान ने नहीं बचाया. सुनामी हो चाहे भूकंप अथवा बाढ़, भगवान की नहीं भोजन की आवश्यकता होती है. इस आपदा से निबटने के लिए भोजन के पैकेट गिराए जाते हैं न कि कुरान, बाइबिल अथवा रामायण. कुछ अंधविश्वासी तर्क देते हैं कि ‘भगवान’ की पूजा तो बड़ेबडे़ विद्वान भी करते हैं. विद्वान होना अलग बात है और अंधविश्वासी होना अलग. विद्वान किसी विषय के हो सकते हैं तो इस का मतलब यह तो नहीं कि अंधविश्वासी न हों. अंधविश्वासी इधरउधर घूम कर अपने अंधविश्वास में ही लौट आता है.
अत: यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि- भगवान का अस्तित्व व उस का शक्तिशाली होना दुनिया का सब से बड़ा झूठ है. यह केवल ठगी का प्रतीक है.
-दुनिया के सभी धर्म अपने अनु- यायियों को दीर्घकाल तक ठगने के सब से बड़े संगठन हैं. -अंधविश्वासी लोग इन्हें पालते- पोसते हैं.
-धर्म के ठेकेदार दानदक्षिणा और भीख पर पलते हैं. -मायामोह सब बेकार कह कर मायामोह वालों से अन्न, दूध, मलाई, मेवा, मिष्ठान, रुपएपैसे आदि का भोग लगा भगवान की जयजयकार कर उन्हें अंधविश्वास की ओर ढकेलते हैं.
-इन का मानना है कि जब तक बेवकूफ जिंदा हैं, बुद्धिमान (भगवान के बंदे) कभी भूखे नहीं मर सकते. अंतत: यह कहा जा सकता है कि जो धर्म जितना पुराना है उतना ही ठगी के धंधे में पारंगत है. चोरी, बेईमानी, घूसखोरी आदि को आम भारतीय सामाजिक अपराध समझता ही नहीं. यह सब ‘भगवान’ की लीला है.