हमारा देश उत्सवों का देश है. पूरे वर्ष हम कोई न कोई त्योहार मनाते रहते हैं. सभी त्योहार हम बड़े उत्साह से मनाते है. लेकिन अब धीरेधीरे त्योहारों पर उत्साह खत्म सा होता जा रहा है. अब लोगों के चेहरों पर त्योहारों के नाम पर थकान सी महसूस होती है.

अब दीवाली को ही लीजिए. हम सब इस त्योहार को बड़े उत्साहपूर्वक मनाते हैं. दीवाली आने से कई महीनों पहले ही इस की तैयारी शुरू हो जाती है.

घर की सफाई करना, खाने पीने की चीजें बनाना, लेकिन अब खानेपीने के बहुत से पकवान बाजार से भी मंगाए जाते हैं, पहले तो सबकुछ घर पर ही तैयार करना पड़ता था. पहले त्योहारों पर मिठाई और अन्य खानेपीने का सामान घरों में बनता था, उस की महक और एहसास समूचे घरपरिवार को खुशी, उत्साह देता था.

शौपिंग करना, रिश्तेदारों का आनाजाना, दीवाली के  दौरान चाहे निम्नवर्ग हो या मध्यमवर्ग, सभी लोग अपनेअपने घरों की साफसफाई करते हैं, घरों को सजाते हैं, रोशनी करते हैं.

और इस तरह साफसफाई करतेकरते इतना थक जाते हैं कि उन का त्योहार मनाने का उत्साह कम ही काफूर हो जाता है. पर क्योंकि लक्ष्मी जी को बुलाना ही है, चाहे इसे विश्वास कहिए या अंधविश्वास और फिर दोबारा ये पूर्ण उत्साह से लग जाते है तैयारी में.

तबीयत पर भारी खानपान : इस त्योहार पर खानेपीने को कुछ ज्यादा ही महत्त्व दिया जाता है. इस चक्कर में लोग बाजार की मिठाई और तला हुआ खाना खा लेते हैं जो कि मिलावटी होने के कारण हमारी तबीयत खराब कर देता है और कई बार तो रिश्तेदार तो उपहार स्वरूप सड़ीगली मिठाई भी दे जाते हैं और वह मिठाई खाने से तबीयत बिगड़ जाती है. जिस से की पूरा त्योहार डाक्टर के चक्कर काटने में निकल जाता है. मिलावटी मिठाइयां बाजार में आ गई हैं और इस की रोकथाम के लिए कोई कारगर उपाय नहीं है.

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