कम कपड़े पहनने वाली या नाच गाकर अपना गुजर बसर करने वाली औरत को चरित्रहीन मानने की सोच के खिलाफ व नारी उत्थान के मुद्दों को परदे पर मनोरंजन के साथ अति सशक्त तरीके से उकेरने में अविनाश दास की फिल्म ‘‘अनारकली ऑफ आरा’’ सफल रहती है. बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म गंभीर मुद्दों को बहुत बेहतर तरीके से उकेरती है.

फिल्म शुरू होती है एक आक्रेस्ट्रा के रंगारंग गीत संगीत के द्विअर्थी गाने के कार्यक्रम से, जिसमें गायिका व नृत्यांगना चमेली की बंदूक से गोली चलने से मौत हो जाती है. यह सारा दृश्य उस वक्त मंच पर मौजूद चमेली की बेटी अनारकली देखती रह जाती है. फिर चौदह साल बाद ‘‘रंगीला आर्केस्ट्रा’’ कंपनी में अनारकली (स्वरा भास्कर) की द्विअर्थी गीत गाने से कहानी शुरू होती है.

‘‘रंगीला आर्केस्ट्रा” कंपनी को रंगीला (पंकज त्रिपाठी) चलाते हैं. शादीशुदा होते हुए भी रंगीला मन ही मन अनारकली को चाहते हैं और मौके बेमौके वह अनारकली को छूने से बाज नहीं आते. इसी बीच अपने लिए देवदास बने लड़के अनवर (मयूर मोरे) को अनारकली अपने साथ रख लेती है. वह अच्छा तबला वादक है. एक बार जब पुलिस स्टेशन कें अंदर विजयादशमी के मौके पर आरा के दरोगा (विजय कुमार) के निमंत्रण पर रंगीला अपनी पार्टी लेकर आर्केस्ट्रा करने जाते हैं, तो वहां अनारकली के नृत्य व गायन कार्यक्रम के दौरान स्थानीय विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ठाकुर धर्मेंद्र (संजय मिश्रा) भी पहुंचते हैं. धर्मेंद्र की राज्य के मुख्यमंत्री से बड़ी निकटता है, इसका वह फायदा उठाते रहते हैं. दरोगा तो धर्मेंद्र की चमचागीरी में लगे रहते हैं.

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