आजकल टैलीविजन पर सुबह-सुबह ग्रहनक्षत्रों की बात अधिक ही होने लगी है. लगता है, 12 राशियां, 9 ग्रहों के जोड़तोड़, कुल 108 के अंकों में ही 1 अरब से अधिक की जनसंख्या उलझ गई है. सुबह घूमते समय भी लोग आज के चंद्रमा की बात करते मिल जाते हैं. उन का कुसूर नहीं है. हम जैसा सोचते हैं, बाहर वैसा ही दिखाई पड़ता है. उस दिन माथुर साहब मिल गए थे, बोले, ‘‘भीतरिया कुंड पर कोई बनारस के झा आए हुए हैं, कालसर्प दोष निवारण करा रहे हैं.’’
‘‘तो,’’ मैं चौंक गया. उन्होंने जेब से एक परचा निकाला, मुझे देना चाहा.
‘‘नहीं, आप ही रखें. जो होना है, वह तो होगा ही, वह होता है, तो फिर इन उपायों के क्या लाभ? ये कोई सरकारी बाबू तो नहीं हैं, जो पैसे ले कर फाइल निकाल देते हैं.’’
उन का चेहरा कुछ उदास हो गया. वे तेजी से आगे बढ़ गए. मैं ने देखा वे अन्य किसी व्यक्ति के साथ खड़े हो कर शायद मेरी ही चर्चा कर रहे होंगे, क्योंकि बारबार वे दोनों मेरी तरफ देख रहे थे. पर अगले ही दिन, कालसर्प दोष लग ही गया था.
अचानक पड़ोस के खन्नाजी के घर से रोने की तेज आवाज सुनाई दी थी, ‘इन्हें क्या हो गया?’
तभी बाहर कौलबैल बज गई. पड़ोसी गुप्ताजी खड़े थे.
‘‘आप ने सुना?’’
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘खन्नाजी का सुबह ऐक्सिडैंट हो गया. वे फैक्टरी से आ रहे थे, पीछे से तेजी से आ रहा टैंकर टक्कर मारता हुआ निकल गया. पीछे आ रहे लोगों ने खन्नाजी को संभाला, पर तब तक उन की मृत्यु हो चुकी थी. अब चलते हैं, उन के घर उन के परिवार वालों को फोन कर दिया है, वे लोग तो शाम तक आ जाएंगे.’’
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