एक दो साल की बच्ची पूरे दिन घर के अंदर अकेले हो, तो क्या क्या हो सकता है, इसकी कल्पना से ही दिल कांप उठता है. जब आप फिल्म ‘‘पीहू’’ में परदे पर दो साल की नन्ही सी बच्ची की हरकतों को देखते हैं, तो आप टकटकी लगाए दिल थामकर देखते रह जाते हैं. कई बार सांसे थम सी जाती हैं. कई बार हंसाती है, तो कई बार रूलाती भी है. जी हां! ‘‘मिस टनकपुर हाजिर हो’’ के बाद अब फिल्मकार विनोद कापड़ी एक दो साल के बच्ची के इर्द गिर्द घूमती बिना गीत संगीत वाली फिल्म ‘‘पीहू’’ लेकर आए हैं.

फिल्म की कहानी दो वर्ष की उम्र की लड़की पीहू (मायरा विश्वकर्मा) की है जो कि अपने घर में कैद होकर रह गयी है, घर से बाहर निकलने का उसके पास कोई रास्ता नहीं है. पीहू को लगता है कि उसकी मां उसके बगल में ही सो रही है. वह अपनी मां को जगाने की कोशिश करती है. कुछ देर बाद उसकी मां पूजा (प्रेरणा शर्मा) के हाथ से जहर की गोलियों की खुली शीशी के गिरने के साथ कुछ गोलियां बिखर जाती हैं, तब दर्शकों अहसास होता है कि पीहू की मां पूजा ने जहर की गोलियां खाकर आत्महत्या कर ली है.

पीहू के पिता गौरव सुबह ही कलकत्ता गए हैं और वह प्रेस का बटन बंद करना भूल गए हैं. वह बार बार बाहर से फोन करते रहते हैं. हर बार उनकी पत्नी पूजा की बजाय बेटी पीहू ही फोन उठाती है. गौरव  फोन पर अपनी पत्नी पूजा को सुनाते हुए जो कुछ कहते हैं, उससे यह पता चलता है कि रात में पीहू के जन्मदिन की पार्टी संपन्न हुई, जिसमें गौरव देर से पहुंचे. पूरी रात गौरव व पूजा में झगड़ा होता रहा. झगडे़ के केंद्र में पूजा की सहेली मीरा थी. पूजा को लगता है कि मीरा व गौरव के बीच अवैध संबंध हैं.

सच से अनजान पीहू मां को सोते हुए समझकर जगाती रहती है. सुबह से रात तक वह संडास करने से लेकर दूध पीने, भूख लगने पर मायक्रोवेव ओवन के अंदर पराठा को गरम करने, गैस स्टोव जलाकर पराठे को सेंकने, खेलने सहित हर काम करती है और तमाम घटनाक्रम ऐसे घटित होते रहते हैं, जिनसे दर्शकों की सांसे थम सी जाती हैं, यह सोचकर कि पीहू को कुछ हो न जाएं.

मसलन – प्रेस चालू है,धीरे धीरे धुंआ उठने लगा है, मायक्रोवेव ओवन में पराठा जलकर राख हो गया. गैस चूल्हे को जलाया, पर उसे बंद करने की बजाय जलते गैस पर रखी रोटी उठाने जा रही है, खुद को फ्रिज के अंदर बंद कर लेती है, बालकनी से गुड़िया के नीचे गिर जाने पर वह बालकनी से नीचे झांकती है और लगता है कि अब गिरी तब गिरी. तो वहीं बाथरूम में लगा गीजर अचानक फट जाता है. इलेक्ट्रिसिटी आ जा रही है. टीवी चल रहा है..वगैरह वगैरह..

लेखक व निर्देशक विनोद कापड़ी ने एक बेहतरीन विषय उठाया, मगर वह इसे सही ढंग से परदे पर पेश नहीं कर पाए. यदि वह थोड़ा सा कहानी पर ध्यान देते, सामाजिक स्थितियों व रिश्तों पर ध्यान देते तो यह फिल्म और अधिक बेहतर बन सकती थी. पति पत्नी के बनते बिगड़ते रिश्ते व पति पत्नी के बीच अहंकार की लड़ाई का छोटे बच्चों पर क्या असर होता है, इसे पूरी तरह से उकेरने में यह फिल्म विफल रहती है. फिल्मकार का सारा ध्यान सिर्फ दो साल की बच्ची की हरकतों व मकान के अंदर मौजूद फ्रिज, फिनायल, इलेकिट्रक, वायर, प्रेस, गैस चूल्हा, बहुमंजली इमारत आदि उपकरणों के साथ घटनाक्रमों को बुनते हुए रोमांचक स्थित पैदा करने तक सीमित रही, जिससे दर्शक टकटकी लगाकर देखता रहे. फिल्म में कुछ सीन अविश्वसनीय लगते हैं. फिर भी फिल्म दर्शकों को भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है.

पूरी फिल्म सिर्फ दो साल की बाल कलाकार मायरा विश्वर्मा के ही कंधों पर है. मां के किरदार में प्रेरणा शर्मा तो सिर्फ बिस्तर परबेहोश सी लेटी ही नजर आती हैं. बाकी कोई किरदार परदे पर नजर नहीं आता. मगर मायरा अपनी मासूमियत से सब का न सिर्फ दिल जीत लेती है, बल्कि लोगों को डेढ़ घंटे तक बांधकर रखती है. उसका असाधारण अभिनय काबिले तारीफ है.

कैमरामैन योगेष जैनी की सराहना करनी ही पड़ेगी.

एक घंटे 32 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘पीहू’’ का निर्माण रौनी स्क्रूवाला, सिद्धार्थ राय कपूर और शिल्पा जिंदल ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक विनोद कापड़ी, कैमरामैन योगेश जैनी, संगीतकार विशाल खुराना, कलाकार हैं – मायरा  विश्वकर्मा और प्रेरणा शर्मा

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