‘नशा नाश की जड़ है भाई, फल इसका अतिशय दुखदायी’. नशा मुक्ति केन्द्रों की दीवारों पर ये नसीहतें अक्सर लिखी दिखती हैं और इसी आशय के तर्जुमे दुनिया भर के केन्द्रों में लिखे होते हैं. लेकिन विडंबना यह है कि इन्हीं नशा केन्द्रों के बाहर जमा कूड़े के ढेर से ही युवा नशे का सामान निकालकर हाई (नशे में चूर) हो रहे हैं. वर्ल्ड हेल्थ और्गेनाइजेशन के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में सड़कों पर रहने वाले 90% से ज्यादा बच्चे किसी न किसी तरह के नशे की गिरफ्त में हैं. वहीं एक आंकड़ा बताता है कि देश में हर 5 में से 1 ड्रग एडिक्ट 18 साल से कम उम्र का है.

सैनिटरी पैड का नशा

इंडोनेशियाई किशोर कूड़े के ढेरों से सैनिटरी पैड और नैपीज बीनकर उन्हें पानी में उबाल रहे हैं और फिर उसे पीकर खुद को नशे में मदमस्त कर रहे हैं. के नशे का चलन यहां के किशोरों के बीच 2016 में बड़ा लोकप्रिय था लेकिन तब इस पर अंकुश लगा दिया गया था पर सैनिटरी पैड का यह ट्रेंड लोकप्रिय हो गया.  नेशनल नारकोटिक्स एजेंसी के सीनियर कमांडर सुप्रिनर्टो के मुताबिक़, यहां के ज्यादातर युवा कचरे से इस्तेमाल हुए पैड्स बिनते हैं, बाद में उन्हें गर्म पानी में उबालते हैं और ठंडा होने के बाद उसे पीते हैं. इंडोनेशिया चाइल्ड प्रोटेक्शन कमीशन की मानें तो यह उन लोगों के नशा पाने का सस्ता तरीका है, जो एल्कोहल व अन्य ड्रग नहीं खरीद सकते. यह विशेष रूप से 13 से 16 वर्ष के बच्चों के बीच ज्यादा चलन में है जो सामान्य, गरीब परिवारों के होते हैं, तनाव, बेरोजगारी पैसे की कमी के चलते नशे का इस्तेमाल करते हैं. भारत के हालत भी इंडोनेशिया से अलग नहीं हैं.

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