अमूमन समाज में लड़कियों को लड़कों से कमतर आंका जाता है. शारीरिक सामर्थ्य ही नहीं अन्य कामों में भी यही समझा जाता है कि जो लड़के कर सकते हैं वह लड़कियां नहीं कर सकतीं, जबकि इस के कई उदाहरण मिल जाएंगे जिन में लड़कियों ने खुद को लड़कों से बेहतर साबित किया है. पिछले वर्ष संपन्न हुए रियो ओलिंपिक और रियो पैरालिंपिक खेलों में खिलाडि़यों की इतनी बड़ी फौज में से सिर्फ  लड़कियों ने ही देश की झोली में मैडल डाल कर देश का नाम रोशन किया. यही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी लड़कियां लड़कों से न केवल कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं बल्कि आगे हैं. हमेशा देश में 10वीं और 12वीं कक्षा के रिजल्ट में लड़कियां ही पहले पायदान पर रहती हैं.

चाहे आईएएस बनने की होड़ हो, विमान या लड़ाकू जहाज उड़ाने की या फिर मैट्रो चलाने की, लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. इस के बावजूद लड़कियों को लड़कों से कमतर आंकना समाज की भूल है.

कुछ धार्मिक पाखंडों, सामाजिक कुरीतियों और परंपराओं ने भी लड़कियों को लड़कों से कमतर मानने की भूल की है. इसी के चलते भ्रूण हत्या तक हो रही है. आज जरूरत है इस दकियानूसी विचार को झुठलाने व खुद को साबित करने की, जिस का सब से सरल उपाय है पढ़लिख कर काबिल बनना.

आप को बता दें कि घर में सब्जी बनाने से ले कर देश चलाने तक में लड़कियां व महिलाएं आगे हैं और उन्होंने यहां खुद को साबित कर दिखा भी दिया है कि हम किसी से कम नहीं हैं.

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