आमतौर पर देखा गया है कि युवतियां पहले तो किसी युवक की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाती हैं या उस की दोस्ती कबूल कर लेती हैं. बाद में उन का यह दोस्ताना रिश्ता शारीरिक संबंधों तक पहुंच जाता है. यह युवक भी जानता है और युवती भी कि उन की शादी हो नहीं सकती, इस के बावजूद दोनों संबंध बना कर सुख भोगते रहते हैं.

सामान्यत: कोई युवक शादी का झांसा दे कर या बहलाफुसला कर युवती से शारीरिक संबंध नहीं बनाता, लेकिन वक्त आने पर युवतियां उस पर शादी का झांसा दे कर बलात्कार करने या यौन शोषण का आरोप लगा कर उसे जेल भिजवाने से भी नहीं हिचकतीं.

कुछ प्रकरणों में तो युवतियों का कहना होता है कि पिछले 5 साल से वह शादी का झांसा दे कर यौन शोषण कर रहा था. प्रश्न यह है कि यदि वह बलात्कार था, तो 5 साल तक वे चुप क्यों बैठी रहीं? क्यों न पहले दिन या पहली बार में एफआईआर दर्ज कराई गई? इन 5 साल में उन्होंने कई बार संबंध बनाए, तब तो उसे कोई आपत्ति नहीं हुई, तो फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि रजामंदी को बलात्कार का स्वरूप दे कर उसे फंसा दिया?

कुछ युवतियां पैसे वाले लड़कों से दोस्ती करती हैं या उन्हें अपने प्रेमजाल में फंसाती हैं. उन के साथ हमबिस्तर होती हैं और उन के पैसों पर ऐश करती हैं. जब सामने वाला हाथ खींच लेता है, तो वह उसे ब्लैकमेल करने लगती हैं कि या तो वह उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करता रहे या फिर झूठे मुकदमे में फंसने के लिए तैयार रहे?

अब यदि युवक ब्लैकमेल से बचने के लिए उसे धनराशि देता है तो उस की कभी खत्म न होने वाली चाहत बढ़ती जाती है, जो आर्थिक दृष्टि से उसे खोखला कर देती है. ऐसे में जिस दिन वह पैसे देना बंद कर देता है, उस पर शादी करने का झांसा दे कर बलात्कार करने का आरोप मढ़ दिया जाता है.

शादी का झांसा या वादा कर यौन शोषण करने के आरोप प्राय: बेतुके, झूठे और बेबुनियाद होते हैं. युवक लाख सफाई दे, रजामंदी से संबंध बनाने की दुहाई दे, लेकिन उसे सुनता कौन है, नतीजतन, बेकुसूर युवक को सजा हो जाती है.

यदि यह मान भी लिया जाए कि कभी युवक ने शादी करने का वादा किया था और अब उस से मुकर रहा है, तो यह वादाखिलाफी तो हो सकती है, पर बलात्कार नहीं. क्या वादाखिलाफी और बलात्कार एक ही अपराध है? तो फिर उसे बलात्कार के जुर्म में क्यों सलाखों के पीछे डाला जाए?

बलात्कार वह होता है जब कोई बलपूर्वक या डराधमका कर किसी युवती के साथ शारीरिक संबंध बनाता है. मैडिकल जांच से पता चल सकता है कि वह बलात्कार था या आपसी सहमति का नतीजा, क्योंकि बलात्कार में छीनाझपटी, कपड़ों का फटना, प्रजनन अंग में जख्म होना आदि बातें उजागर होती हैं, लेकिन यदि दोनों की सहमति से संबंध बनते हैं तो इस तरह के कोई लक्षण नजर नहीं आते.

जो युवती युवक पर शादी का झांसा दे कर संबंध बनाने जैसे इलजाम लगाती है, कोई उस से पूछे कि वह झांसे में आई क्यों? वह नासमझ तो है नहीं? यदि नाबालिग है तो यह उम्र नहीं शारीरिक संबंध बनाने की, उस ने अपनी सहमति क्यों दी? यदि वह बालिग है तो अपना भलाबुरा खुद जानती है, इस के लिए वह तैयार क्यों हुई?

आजकल मौडर्न सोसायटी या बड़े शहरों में साथ पढ़ने वाले अथवा नौकरीपेशा युवकयुवतियों में ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने का चलन बढ़ रहा है. अपने घरपरिवार से दूर युवकयुवती एक कमरे में, एक छत के नीचे बगैर शादी किए रहते हैं, ऐसे युवकयुवतियां शादी को एक बंधन मानते हैं और इस बंधन में बंधना नहीं चाहते, पर शादी के बाद मिलने वाला सुख भोगना चाहते हैं.

न तो उन्हें ‘लिव इन’ में रहने के लिए कोई विवश करता है और न ही शारीरिक संबंध बनाने के लिए. रही बात शादी का झांसा देने की, तो इस का प्रश्न ही पैदा नहीं होता, क्योंकि शादी नहीं करनी थी, तभी तो वे ‘लिव इन’ में साथ हैं. इसलिए 10 साल तक ‘लिव इन’ में रहने के बाद युवक पर यौन शोषण का आरोप लगाना सरासर नाइंसाफी है.

एक बात यह भी है कि ‘लिव इन’ में रहने वाली युवतियां हों या युवक मौजमस्ती के लिए वे गर्भनिरोधक गोलियों अथवा अन्य साधनों का इस्तेमाल करते हैं ताकि गर्भ न ठहरे. जरा गौर कीजिए, क्या आज तक किसी ने कंडोम का इस्तेमाल कर बलात्कार किया है? तो फिर यह बलात्कार या यौन शोषण कैसे हो सकता है?

कई बार मंगेतर प्रेमीप्रेमिका जब एकांत में होते हैं तो परिस्थितिवश उन के कदम बहक जाते हैं और वे शादी का इंतजार किए बगैर शारीरिक संबंध बना लेते हैं. ऐसे में युवती या उस के परिजन उस से शादी करना नहीं चाहते तो उलटे उस पर बलात्कार का आरोप लगा कर उस से मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं.

यदि आप शादी से पूर्व शारीरिक संबंध बनाने को गलत मानती हैं तो संबंध न बनाएं. एक सीमा तक ही उसे शारीरिक स्पर्र्श करने दें. शारीरिक संबंधों को ‘शादी के बाद’ के लिए छोड़ सकती हैं.

कोई भी युवक, प्रेमी या मंगेतर तब तक संबंध नहीं बनाता, जब तक कि युवती राजीखुशी तैयार नहीं होती या अपनी मौन स्वीकृति’ नहीं दे देती. यदि युवक पहल करता है और वह उस का मजा लेते हुए उसे सब कुछ करने देती है, तो फिर यह बलात्कार कैसे हुआ?

इस तरह के बलात्कार या यौन शोषण के मुकदमे दर्ज कराने वाली युवतियां खुद भी जानती हैं कि वह बलात्कार नहीं था. कई प्रकरणों में तो युवती उसे बलात्कार सिद्ध करने में असफल रही या युवक ने यह सिद्ध कर दिया कि जो कुछ हुआ वह दोनों की सहमति से हुआ. ऐसे में न्यायालय युवती को बलात्कार का झूठा मुकदमा दर्ज करने पर फटकार लगाता है तथा युवक को बरी कर देता है.

राजस्थान के बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी का मानना है कि छोटी उम्र में अगर जानेअनजाने में भी सहमति से संबंध बनाएं जाएं, तो उसे दुष्कर्म नहीं मानना चाहिए.

इस के व्यावहारिक पहलू को समझने की जरूरत है. ऐसे मामलों में अकसर युवक के खिलाफ पोक्सो ऐक्ट के तहत मामला दर्ज हो जाता है और उसे जीवन भर परेशानी होती है.

राजस्थान के राजसमंद जिले में अपने दौरे में अधिकारियों के साथ बैठक में मनन चतुर्वेदी ने कहा कि आजकल जितने भी पोक्सो ऐक्ट में दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज हो रहे हैं जिन में बालक को दोषी ठहराया जा रहा है, उन में परामर्श की जरूरत है ताकि गलती दोबारा न हो.

मनन चतुर्वेदी ने आगे कहा कि उन्होंने कई आदिवासी इलाकों का दौरा किया और मातापिता तथा किशोरगृहों में रह रहे बच्चों से बात की, तो सामने आया कि उन्हें यह पता ही नहीं है कि वे क्या गलती कर बैठे हैं. उन्होंने कहा कि वे पोक्सो ऐक्ट को गलत नहीं मानतीं, लेकिन यह ऐक्ट लगाने से पहले बच्चों को समझाने की जरूरत भी है.

बच्चे फिल्में देख कर या किसी परिस्थिति में संबंध बना लेते हैं, मगर इस में कहीं न कहीं एकदूसरे की रजामंदी जरूर है. इस के लिए न सिर्फ स्वयंसेवी संगठनों की जिम्मेदारी से परामर्श देते हुए लोगों को प्रेरित करना होगा बल्कि पुलिस व प्रशासन को भी ध्यान देना चाहिए. चतुर्वेदी के बयान पर राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने कहा कि देखना होगा कि चतुर्वेदी ने किस संदर्भ में यह बयान दिया है.

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