हिंदू विवाह कानून के अंतर्गत विवाह करना तो बहुत आसान है पर तोड़ना बहुत कठिन. देश की अदालतें ऐसे मामलों से भरी पड़ी हैं जिन में पतिपत्नी वर्षों तक तलाक के लिए इंतजार करते नजर आते हैं. हां, यह अवश्य है कि इन मामलों में एक जना तलाक का आदेश चाहता है और दूसरा उस का विरोध करता है.

कठिनाई तो यह होती है कि जब 5-7 साल बाद फैमिली कोर्ट से कोई तलाकनामा मिल भी जाए तो दोनों में से एक कोर्ट में अपील करने पहुंच जाता है. कई मामले तो 10-15 वर्षों बाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं जो तब कानून की व्याख्या करता है.

यह एक दुखद बात है. तलाक का कानून असल में सरल और सहज होना चाहिए. जब कोई पतिपत्नी साथ न रहना चाहें तो देश की कोई भी ताकत उन्हें साथ रहने को मजबूर नहीं कर सकती. पतिपत्नी संबंध जोरजबरदस्ती का है ही नहीं. 1956 से पहले जब हिंदू विवाह कानून नहीं था तब भी औरतें जब चाहे अपने मायके जा कर बैठ जाती थीं और पति जब चाहे एक को बिना तलाक दिए दूसरी से शादी कर लेता था.

1956 का सुधार औरतों के लिए आफत बन गया है, क्योंकि अब बिचौलिया अदालत दरअसल घर को जोड़ने की जगह जिंदगी के टूटे बरतनों को सहेज कर वर्षों तक रखने को मजबूर करती है.

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को 2011 में हुए तलाक और दूसरे विवाह की वैधता का फैसला 7 वर्षों बाद 2018 में देना पड़ा. नए पतिपत्नी झगड़ने लगे थे कि उन का दूसरा विवाह कानूनी है या नहीं, क्योंकि पिछले तलाक के आदेश को ऊपर की अदालत में चुनौती दी गई थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...