रेटिंग : दो स्टार 

‘इश्किया’, ‘डेढ़ इश्किया’, ‘उड़ता पंजाब’ जैसी गाली गलौज और हिंसा प्रधान फिल्मों के निर्देशक अभिषेक चौबे इस बार सत्तर के दशक के चंबल के बीहड़ की पृष्ठभूमि पर डाकुओं की कहानी लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने श्राप, अंतर आत्मा की आवाज को सुनने से लेकर जातिवाद यानी कि गुर्जर बनाम ठाकुर की लड़ाई पेश की है. मगर पूरी फिल्म कहीं से भी प्रभावित नहीं करती.

फिल्म की कहानी के केंद्र में डाकू मान सिंह (मनोज बाजपेयी) का गिरोह है, जो कि ठाकुरों का गिरोह है. यह गिरोह औरतों पर हाथ नहीं उठाता. मगर इन पर गुर्जर जाति को समूल नष्ट करने के लिए एक पांच वर्ष की लड़की का श्राप है. इस गैंग में लखना (सुशांत सिंह राजपूत),वकील सिंह (रणवीर शौरी) जैसे कई डाकुओं का समावेश है. मगर इस डाकुओं के इस गिरोह को समूल नष्ट करने के लिए मध्य प्रदेश पुलिस के इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह गुज्जर (आषुतोश राणा) ने कसम खा रखी है. इधर मान सिंह का गिरोह ईश्वर में आस्था रखने के साथ ही अपने वजूद को लेकर सवाल उठाने के अलावा अपने जीने की वजहें भी तलाशता रहता है. डाकू लखना सहित कुछ के मन में यह विचार आ रहा है कि वह सरकार के सामने आत्मसमर्पण करके नई जिंदगी जिए. बीहड़ के जंगलों में भटकते हुए एक दिन अचानक इस गिरोह को रास्ते में मरा हुआ सांप मिलता है, जिसके कुछ हिस्से गिद्ध नोंच चुके हैं, गिरोह के सदस्य चाहते हैं कि रास्ता बदल दिया जाए,मगर मान सिंह अपनी बंदूक से उस सांप को उठाकर एक किनारे पर रखकर गिरोह को आगे बढ़ने का आदेश देते हैं.उसके बाद लच्छू आकर उन्हे सूचना देता है कि ब्राम्हणपुरी के गांव में सुनार की बेटी की शादी है. इसे यह गिरोह लूटने जाता है, जबकि लच्छू ने मानसिंह को बताया था कि वह पुलिस के कहने पर ही सूचना देने आया है और लच्छू के पिता को पुलिस ने बंदी बना रखा है. मानसिंह अपने गिरोह के साथ सुनार के यहां पहुंचते हैं, जहां पुलिस इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह गुज्जर अपने साथी पुलिस वालों की मदद से मान सिंह सहित कई डाकुओं को मौत के घाट उतार देते हैं. जबकि लखना व वकील सिंह जैसे कुछ डाकू सुरक्षित भागने में कामयाब हो जाते हैं. उधर रास्ते में मजबूर  इंदूमती तोमर (भूमि पेडणेकर) व बलात्कार की शिकार अछूत जाति की छोटी लड़की सोन चिड़िया मिलती है, जिसकी मदद करने के लिए लखना तैयार हो जाता है. मगर यहीं से लखना व वकील के बीच दूरी हो जाती है. अब यह गिरोह दो भागां में विभाजित हो जाता है. कहानी कई मोड़ों से गुजरती है. अंततः वकील सिंह व लखना सहित तमाम डाकू मारे जाते हैं. पर अंत में एक ठाकुर जाति का पुलिस सिपाही, पुलिस इंस्पेक्टर वीरेंद्र सिंह गुज्जर को मौत दे देता है.

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