अमीर देशों में धार्मिक अंधविश्वास कम होते हैं और गरीब देशों में ज्यादा. इसी तरह अमीर लोग कम अंधविश्वासी होते हैं और गरीब लोग ज्यादा. 109 देशों के पूरे 20वीं सदी के आंकड़ों को जांच कर यह गुत्थी सुलझाने की कोशिश की गई कि अंधविश्वास पैसा आने के बाद कम होते हैं या पैसा आता ही तब जब अंधविश्वास कम हों.

यूनिवर्सिटी औफ ब्रिस्टल व यूनिवर्सिटी औफ टैनिसी के शोधकर्ताओं का मानना है कि अंधविश्वासों में कमी ही देश, राज्य, समाज या घर की आर्थिक प्रगति के लिए जिम्मेदार है. आर्थिक प्रगति से अंधविश्वासों में कमी हो जाएगी यह गलत धारणा है.

यह स्वाभाविक है कि जो लोग हरेक सुख के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के आदी हो जाते हैं वे सबकुछ ईश्वर के पूजापाठ पर छोड़ देते हैं. जिन्हें खुद पर विश्वास होता है उन्हें ईश्वर से कोई अपेक्षा नहीं होती और वे मेहनत कर के उत्पादन करते हैं.

हमारे देश में उत्तर प्रदेश, बिहार गरीब हैं क्योंकि ये ही देश के तीर्थस्थलों के केंद्र हैं. गंगा के किनारे हर 100 मीटर पर एक घाट बना है. कुछ मील पर मंदिरों का शहर है. हर शहर बदबूदार है. हर शहर में गंद है. हर शहर में बेईमानी है. हर शहर में तीर्थयात्रियों की भरमार है. लोग अपने काम अधूरे छोड़ कर पुण्य कमाने और ईश्वर को खुश करने यहां आते हैं.

हां, हमारे यहां बहुत से अमीर भी अति धार्मिक हैं पर यह याद रखिए कि इन धार्मिक अमीरों में 99% सरकारी कृपा पर पनप रहे हैं. उन के उद्योगों और आशाराम के आश्रमों में फर्क नहीं है. वे उद्योगपति कम हैं, सरकार व जनता को बहका कर लूटे पैसे के संरक्षक ज्यादा. दुनियाभर में भारतीय ब्रैंड नाम कहीं नहीं बिकता.

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