भारत के पुरुष प्रधान समाज में आज भी महिलाओं को चारदीवारी में कैद कर चूल्हेचौके तक सिमटाए रखने की दकियानूसी सोच हावी है, मगर जब वक्त पड़ता है, तो बेटियां भी किसी भी क्षेत्र में बेटों के मुकाबले पीछे नहीं रहती हैं. बहुत सी बेटियों ने तो उन क्षेत्रों में भी विश्व स्तर पर वाहवाही बटोरी है, जिन्हें मर्दों के दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है.

मुक्केबाजी के बारे में कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है. लेकिन मर्दों के  दबदबे वाले इस खेल में भारत की बहुत महिलाओं ने इंटरनैशनल लैवल पर नाम कमाया है. उन्हीं में से एक हैं कविता चहल. 5 फुट, 9 इंच लंबी हरियाणा पुलिस में काम कर रही इस खूबसूरत महिला मुक्केबाज ने 2013 में ‘अर्जुन अवार्ड’ हासिल कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था. आइए, इन के बारे में इन्हीं से विस्तार से जानते हैं:

रिंग में उतरने की कैसे सोची?

मेरे पिता भूप सिंह सेना में मुक्केबाज थे. एक दिन वे प्रैक्टिस के लिए जा रहे थे कि उन का ऐक्सीडैंट हो गया. उन्हें गंभीर चोटें आईं. वे कई दिनों तक कोमा में रहे.

वे धीरेधीरे ठीक हुए. एक दिन घर पर आराम करते हुए उन्होंने टैलीविजन पर देखा कि लड़कियां भी मुक्केबाजी कर रही हैं. अत: वे मुझे भिवानी में मुक्केबाजी के ‘द्रोणाचार्य अवार्ड’ से सम्मानित कोच जगदीश सिंह के पास ले गए. तब मेरी उम्र 18 साल थी और उस समय स्कूल में कबड्डी खेलती थी.

इस के बाद मैं 1 महीने तक गांव से ही भिवानी प्रैक्टिस के लिए जाती रही. फिर भिवानी में रहने लगी. 2007 में मैं ने मुक्केबाजी के नैशनल कंपीटिशन में गोल्ड मैडल जीता, जिस से पिता का हौसला और ज्यादा बढ़ गया.

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