1990 में कोलकाता के प्रसिद्ध चिड़ियाघर में एक मादा जिराफ को अफ्रीका से मंगवाया गया. मादा जिराफ वास्तव में बहुत ही सुंदर थी. उस का नाम एक नदी तिस्ता पर रखा गया था. उस समय जब आपत्ति की गई कि अलीपुर चिड़ियाघर बहुत छोटा है, तो तब के मंत्री ने कहा कि चिड़ियाघर को खुले इलाके में ले जाया जाएगा जहां तिस्ता आराम से घूम सके. वह दिन आज तक नहीं आया है. तिस्ता भी नहीं बची और 4000 दूसरे पशु भी अकाल मृत्यु पा चुके हैं.

कोलकाता चिड़ियाघर ने जिराफों को एक ट्रक में उड़ीसा के नंदनकानन चिड़ियाघर में भेजा था पर रास्ते की खराब सड़कों के हिचकोलों से तिस्ता की खाल छिल गई और सिर एक बिजली के तार से टकरा गया और वह बिजली का करंट लगने से मर गई.

गिनती के बचे हैं जिराफ

दुनिया को शेरों, हाथियों और चिंपाजियों की तो चिंता है, पर विलुप्तप्राय होते जिराफों की कोई चिंता नहीं कर रहा. पिछले 15 सालों में उन की आबादी 40% घट गई है और अब दुनियाभर में सिर्फ 80 हजार जिराफ बचे हैं.

इस के मुख्य दोषियों में अमेरिका भी है जो उन्हें खतरे में पहुंचे जानवरों की गिनती में रखने को तैयार नहीं है. अमेरिकी पर्यटक जिराफ की हड्डियों की सजावटी चीजें बड़ी शान से खरीदते हैं. औसतन अमेरिकी शान के लिए रोज 1 जिराफ मार दिया जाता है. अभी चीनियों को नशा नहीं चढ़ा है. जिस दिन उन पर जिराफ से बनी चीजें खरीदने का नशा चढ़ेगा, वे अपनी मनी पौवर से सारे जिराफों को महीनों में मार कर टुकड़ों में चीन मंगवा लेंगे. जिराफों की संख्या अब हाथियों से भी कम है.

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