हर 15 मिनट में एक हाथी का शिकार उसके दांतों के लिए होता है, इसलिए हाथी दांत से बने सामानों का प्रयोग न करने की सलाह देती फिल्म ‘जंगली’ को अमेरिकन फिल्म मेकर और निर्देशक चक रसेल ने ‘जंगली प्रोडक्शन हाउस’ के तहत एक्शन पैक्ड मनोरंजक फिल्म बनायी. ये सही भी है कि जानवरों का अवैधशिकार विश्व में सभी स्थानों पर होता आया है और इसमें सुरक्षा अधिकारी से लेकर सभी शामिल होते हैं और ऐसे में उन्हें पकड़ना किसी भी सरकार या संस्था के लिए मुमकिन नहीं. ये कहानी कोई नयी नहीं, पर इसमें हाथियों की सुरक्षा जरुरी है, इसे स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए अभिनेता विद्युत् जामवाल ने अपने उम्दा और भावनात्मक अभिनय को जानवरों की भावना से जोड़ने की कोशिश की है. जो काबिले तारीफ है. विद्युत जामवाल से अधिक कोई भी अभिनेता इस किरदार में फिट नहीं बैठ सकता था.

ये फिल्म वाकई पारिवारिक फिल्म है. इसमें बच्चों को जानवरों के प्रति सहानुभूति, स्नेह और संवेदनशीलता को बनाये रखने की दिशा में सीख देती है. इसके अलावा फिल्म में पत्रकार के रूप में आशा भट्ट, महावती के रूप में मराठी एक्ट्रेस पूजा सावंत, मकरंद देशपांडे और अतुल कुलकर्णी ने काफी अच्छा काम किया है. कहानी इस प्रकार है,

राज नायर (विद्युत् जामवाल) मुंबई का रहने वाला एक वेटेनरी डौक्टर है और वह जानवरों की  मानसिकता को अच्छी तरह समझता है. अपनी मां की मौत के बाद वह शहर आ जाता है और 10 साल बाद वह ओड़िसा के ‘चन्द्रिका एलीफैंट सेंचुअरी’ जाता है. जहां उसका पिता और महावती के रूप में शंकरा (पूजा सावंत) हाथियों की देखभाल करते है. वहां टीवी जर्नलिस्ट मीरा ( आशा भट्ट) भी पहुंचती हैं, जो जंगल की पूरी कहानी को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं. राज वहां आने पर कुछ शिकारियों द्वारा हाथी दांत के लिए हाथियों के अवैध शिकार को देखकर मर्माहत होता है और उन्हें सजा देने की कसम खाता है. इसी तरह कहानी कई परिस्थितियों से गुजर कर अंजाम तक पहुंचती है.

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