‘गौ माता की जय’ का नारा व्यर्थ का नहीं है और अगर सरकार भी यह नारा लगा रही है, तो सही ही है. अगर आम गृहिणी सोचती है कि किसी गाय को 2 सूखी रोटियां खिलाने से उस के घर में 4-5 टन अनाज भर जाएगा तो गलत नहीं है, क्योंकि गौ माता की जय के सहारे ही आज सत्ता मिली है और खरबों की संपत्ति के मालिक वे बने हैं, जो कल तक मारेमारे फिर रहे थे. देश भर में गौ रक्षकों के झुंड तैयार हो गए हैं, जिन्हें अब आप के घर के रैफ्रिजरेटर तक में झांकने का हक सरकार ने दे दिया है.

गौ माता की सेवा की बात ज्यादा हो रही है, मां की सेवा की कम. अगर युवा और किशोर मांओं को सिर्फ पैसा देने की मशीन मानते हैं, तो गलत क्या है, क्योंकि गौ माता भी यही काम करती है. प्रौढ होते बेटेबेटियों को जब बहुत बूढ़ी हो चुकी मां की एक तरफ सेवा करनी होती है और युवा खर्चीले होते बेटेबेटियों की बढ़ती मांगों की पूर्ति दूसरी तरफ, तो गौ माता की तरह अपनी माता भी एक तरह से घर के बाहर बांध दी जाती है कि आतेजाते भक्त उसे खिलापिला दें.

गौ सेवा के नाम पर नौटंकी का असर हमारे दिलोदिमाग पर न पड़े यह संभव नहीं है. जब तक गाय केवल उपयोगी दुधारू पशु मात्र थी, उस के साथ न मानवीय व्यवहार होता था न मानवीय व्यवहार से तुलना की जाती थी. अब सरकारी श्रेय है कि यह पशु नहीं माता बन गई और खुद की मां का स्तर स्वाभाविक है कुछ कमतर हो चला है.

ऐसा गुरु और पिता के साथ भी होता रहा है. संत, महंत अपनी हलवापूरी का इंश्योरैंस कराने के लिए हर भक्त से कहते रहते हैं कि गुरु भगवान है, ब्रह्मा है, समस्त है, संपूर्ण है और पिता से बढ़ कर है. कितने ही पिता अपने बिगड़ैल बच्चे को खुद अनुशासन में लाने की जगह गुरु के चरणों में बैठा कर धन्य होते हैं कि अब उन का बेटा तो सुधर गया. अनवरत प्रचार से अपना विवेक, तर्क, ज्ञान, पढ़ाईलिखाई भुला कर वे हाथ जोड़ कर व आंखें मूंद दान एकत्र करने वाले गुरु को नैया पार करने वाले मान लेते हैं.

यही अब हर गृहिणी को शिक्षा दी जा रही है, सरकारी ठप्पा लगा कर. मां की नहीं गौ माता की सेवा करो ज्यादा धन्य होंगे. जैसे एक पार्टी को अखिल भारतीय सत्ता मिली है, लाखों लफंगों को स्वयं की दी गई गौ रक्षक की नौकरी मिली है वैसे ही उन्हें गाय की सेवा से, मां की नहीं, तृप्ति भी मिलेगी. मां तो मरने के बाद पैसा दे कर जाएगी ही तो अब सेवा करो या न करो क्या फर्क पड़ता है. गौ सेवा नहीं की तो हो सकता है कि गौ देवी की भी कुदृष्टि पड़े और गौ समर्थक सरकार की भी.

समस्त बहनों और मांओं से यही निवेदन है कि वे सही मां का चयन करें. हमारे नेता गलत थोड़े ही होंगे. समाज को फिर 500 साल पहले के स्वर्णिम युग में लाना है जब ‘बूढ़ी’ मां 40-45 की आयु में चल बसती थी.                

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...