रविवार की सुबह मेरे पास बड़े भैया का फोन आ गया, ‘‘शेखर, आज सीमा के हाथ के बने मूली के परांठे खाने का दिल कर रहा है. सीमा से कहना कि मसाले में मिर्च ज्यादा तेज न रखे.’’
उन के आने की खबर सुनने के बाद ही मेरे घर में बेचैनी और तनाव के बादल घिर आए. मेरे परिवार के तीनों सदस्य मुझे घेरने वाले अंदाज में मेरे इर्दगिर्द आ बैठे थे.
किसी के बोलने से पहले ही मेरे बेटे समीर ने साफ शब्दों में मुझे चेतावनी दे दी, ‘‘पापा, आज आप ताऊजी को रूपाली के बारे में जरूर बता दो. इस मामले को और लटकाना ठीक नहीं है.’’
‘‘तुम सब अपने ताऊजी की आदत को जानते नहीं हो क्या?’’ मैं एकदम चिढ़ उठा, ‘‘वे जातिपांति और धर्मकर्म में विश्वास रखने वाले इनसान हैं. मांसमछली खाने वाली बंगाली लड़की से तेरे विवाह की बात सुन कर वे बहुत नाराज होंगे. शादी होने के 2 महीने पहले उन्हें खबर दे कर घर में फालतू का क्लेश कराने की कोई तुक बनती है क्या?’’
‘‘पापा, आप ताऊजी से इतना क्यों घबराते हैं?’’ मेरी बेटी अंकिता मुझ से नाराज हो उठी.
मेरी पत्नी सीमा भी अपने बच्चों का साथ देते हुए बोली, ‘‘हमें अपने बेटे की खुशी देखनी है या भाई साहब की? मैं तो कहती हूं कि जो क्लेश होना है, अभी हो जाए. बाद में खुशी के मौके पर घर में कोई हंगामा हो, यह हमें बिलकुल सहन नहीं होगा.’’
मैं परेशानी भरे अंदाज में हाथ मलते हुए भावुक हो कर बोला, ‘‘इस वक्त मेरी मनोदशा को तुम में से कोई भी नहीं समझ रहा है. बड़े भैया के बहुत एहसान हैं मुझ पर. उन्होंने अपनी व अपने बच्चों की सुखसुविधाओं में कटौती कर के मुझे पढ़ाया था. उन के लिए अपनी सीमित पगार में मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फीस भरना आसान काम नहीं था. उन के फैसले के खिलाफ मैं न कभी गया हूं और न जाना चाहता हूं.’’