बौलीवुड एक्टर आदित्य रौय कपूर का करियर काफी हिचकोले लेते हुए आगे बढ़ रहा है. 2017 में रिलीज फिल्म ‘‘ओ के जानू’ ’की असफलता ने उनके करियर पर विराम सा लगा दिया था. लेकिन अब वो 17 अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्म ‘‘कलंक’’ के अलावा ‘सड़क 2’ और ‘मलंग’ जैसी मल्टीस्टारर फिल्मों में नजर आएंगे.
‘‘ओके जानू’ की असफलता का आपके कैरियर पर असर पड़ा?
-देखिए, हर फिल्म का कलाकार के करियर पर असर होता है. ‘ओ के जानू’ को लेकर मैं काफी उत्साहित था. हमें एक फिल्म को बनाने में छह महीने लगते हैं और उसका परिणाम सिर्फ एक दिन में आ जाता है. फिल्म के निर्माण के दौरान हमारा जो अनुभव होता है, वह सदैव हमारे साथ रहता है. फिल्म ‘ओ के जानू’ को आपेक्षित सफलता नहीं मिली, मगर वजह स्पष्ट नहीं हुई. मेरा मानना है कि जब आप समान विचार वालों के साथ काम करते हैं, तो उसका असर अलग होता है. मेरी समझ में आया कि समान विचार वाले सहकलाकार के साथ काम करने का अनुभव अच्छा होता है. ‘ओ के जानू’ में हम सभी ने एक टीम की तरह काम किया था. काम अच्छा हो रहा था, इसलिए हमें काम करने में मजा आ रहा था. पर फिल्म का चलना एक कठिन अनुभव रहा, क्योंकि फिल्म की असफलता की वजह समझ में नहीं आयी. यह विज्ञान तो है नही. फिल्म के असफल होने पर मैने बहुत ज्यादा नहीं सोचा. मेरा मानना है कि हर फिल्म हमें कुछ न कुछ सिखाती है. हर फिल्म कलाकार के सामने एक नई चुनौती लेकर आती है और जब कलाकार उसमें अभिनय करता है, तो उसे खुद के बारे में कुछ नया पता चलता है.
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अब आपको मल्टीस्टारर फिल्मों का ही सहारा मिल रहा है?
-ऐसा आप कह सकते हैं. क्योंकि मुझे मल्टीस्टारर फिल्में ज्यादा उत्साहित करती हैं. मैं मानता हूं कि सोलो हीरो वाली फिल्मों में सारा दारोमदार हमारे कंधों पर होता है. पर इन दिनों दर्शक एक्सपेरीमेंटल फिल्में ज्यादा देखना चाहता है. पर जब मल्टीस्टार कलाकार वाली फिल्म होती है, तो दर्शक ज्यादा मिलते हैं. क्योंकि फिल्म से जुड़े हर कलाकार के फैंस फिल्म देखने आते हैं. 17 अप्रैल को मेरी फिल्म ‘कलंक’ रिलीज हो रही है, जिसमें मेरे साथ वरूण धवन, संजय दत्त, आलिया भट्ट, माधुरी दीक्षित व सोनाक्षी सिन्हा हैं. मैं अनुराग बसु के साथ जो फिल्म कर रहा हूं, उसमें भी मेरे साथ कई दूसरे कलाकार हैं. महेश भट्ट के साथ ‘सड़क 2’ में भी मेरे अलावा आलिया भट्ट, पूजा भट्ट व संजय दत्त हैं. जबकि मोहित सूरी की फिल्म ‘मलंग’ भी मल्टीस्टारर है. ‘मलंग’ में मेरे साथ दिशा पटनी, अनिल कपूर व कुणाल खेमू हैं.
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लेकिन मल्टीस्टारर फिल्मों में आपके किरदार की अहमियत?
-मैं फिल्म चुनते समय अपने किरदार को प्राथमिकता देता हूं. ‘कलंक’ भी मल्टीस्टारर है. इसमें सभी कलाकार मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं. मगर फिल्म में आप देखेंगे कि हर कलाकार के किरदार की अहमियत है.
फिल्म ‘कलंक’ क्या है?
-यह कहानी प्यार और रिश्तों की है. पारिवारिक रिश्तों, शादी व गम सहित कई इमोशन को लेकर एक जटिल फिल्म है. इसके हर किरदार की अपनी एक अलग कहानी है. हर किरदार के साथ आप दर्शक की हैसियत से जुड़ सकते हैं.
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फिल्म ‘कलंक’ के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगे?
-मैने देव चैधरी का किरदार निभाया है, जो कि एक अखबार का प्रधान संपादक है, प्रकाशक है. यह उसका पारिवारिक व्यवसाय है. पढ़ा-लिखा इंसान है. रिश्तों को लेकर ईमानदार और पैशेनेट है. पर उसकी जिंदगी में जो कुछ घटता है, उन्हें वह रोक नहीं पाता और उसके साथ जो कुछ घट रहा है, उनसे निपटने का प्रयास करता रहता है.
फिल्म ‘‘कलंक’’ में आपके लिए क्या चुनौती रही?
-इस फिल्म में मेरा किरदार काफी चुनौतीपूर्ण रहा. यह एक गंभीर किस्म की फिल्म है. यह देश की आजादी से पहले 1940 के पृष्ठभूमि की कहानी है. उन दिनों हमारे देश में कई तरह के आर्थिक व राजनीतिक उथलपुथल हो रहे थे. मेरे लिए उन सब हालात के बारे में जानना बहुत जरुरी था. क्योंकि जब आप एक किरदार निभा रहे हैं, तो उस वक्त को, राजनीतिक परिस्थितियों को समझना जरूरी था. उस माहौल में जो इंसान रहता था, उसका माइंड सेट क्या होगा, इसे समझना जरुरी था. इस बात को समझे बगैर किरदार को न्याय संगत तरीके से निभाना संभव ही नहीं था. इसके लिए मैने कई किताबें पढ़ीं. इंटरनेट पर भी 1940 के समय की कुछ जानकारी पढ़ी. मेरे लिए यह काफी रोचक अनुभव रहा. बहुत कुछ जानने व समझने का अवसर मिला.
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आपने कौन-कौन सी किताबें पढ़ी?
-जवाहर लाल नेहरु की किताब ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ पढ़ी. यह काफी रोचक किताब है. इसे उन्होंने उस वक्त लिखा था, जब वह तीन चार साल के लिए जेल में बंद थे. यह किताब उस वक्त लिखी गयी थी, जब हमारे देश का भविष्य अनिश्चित था. इस किताब से मुझे उस काल का एक प्रस्पेक्टिव मिला. इसके अलावा शशि थरूर की किताब पोलीटिकल प्लेनेट आफ ए टाइम’. एक किताब ‘इंडियन समर’ है.
1940 के प्यार और रिश्ते, क्या वर्तमान समय में उसी तरह से हैं?
-इसका जवाब देना मुश्किल है. मुझे लगता है कि समय के साथ समाज व देश बदलता है, मगर इंसानी भावनाएं तो वही रहती हैं. एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति अहसास वही हैं. हमारे माता-पिता शादी को जिस नजरिए से देखते थे, शायद हम या हमारी पीढ़ी के लोग उस नजरिए से नहीं देखते हैं. समाज बदलने के साथ माइंड सेट बदलता है. मोबाइल जैसी तकनीक के चलते भी हमारे व सामाजिक व्यवहार में अंतर आया है.
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सोशल मीडिया को कैसे लेते हैं?
-अभी डेढ़-दो महीने पहले ही इंस्टाग्राम पर आया हूं. हर दिन इंस्टाग्राम पर नहीं रहता. सोशल मीडिया की लत नही हेानी चाहिए.
Edited by- Nisha Rai