शरीर के सब से महत्त्वपूर्ण अंगों में शुमार होता है लिवर. यह शरीर का सब से बड़ा भीतरी अंग है जो स्वस्थ शरीर के अस्तित्व के लिए जरूरी कई रासायनिक क्रियाओं के लिए जिम्मेदार है.
लिवर एक ग्रंथि भी है क्योंकि यह ऐसे रसायनों का स्राव भी करता है जिस का इस्तेमाल शरीर के अन्य अंग करते हैं. अपने अलग अलग तरह के कार्यों के कारण यह एक अंग और ग्रंथि दोनों में शुमार होता है. यह शरीर के सामान्य ढंग से काम करने के लिए जरूरी रसायनों का निर्माण करता है. यह शरीर में बनने वाले तत्त्वों को छोटेछोटे हिस्सों में तोड़ता है और जहरीले तत्त्वों को खत्म करता है. साथ ही, यह स्टोरेज यूनिट की तरह भी काम करता है.
हेप्टोसाइट्स (हेपट-लिवर+ साइट-सेल) शरीर में कई प्रकार के प्रोटीन के निर्माण के लिए जिम्मेदार होते हैं जिन की अलगअलग कार्यों के लिए जरूरत होती है. इन में ब्लड क्लौटिंग और एल्बुमिन शामिल हैं जिन की सर्कुलेशन सिस्टम के भीतर फ्लुइड बनाए रखने के लिए जरूरत होती है.
लिवर कोलैस्ट्रौल और ट्रिग्लीसेराइड्स बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण भी लिवर में होता है और यह अंग ग्लूकोज को ग्लूकोजेन में बदलने के लिए जिम्मेदार है जिन्हें लिवर में और मांसपेशियों की कोशिकाओं में स्टोर किया जा सकता है.
लिवर बाइल भी बनाता है जो खाना पचाने में मदद करते हैं. लिवर शरीर में उपापचयी प्रक्रिया के सहउत्पाद अमोनिया को यूरिया में बदल कर शरीर को जहरीले तत्त्वों से मुक्त करने में अहम भूमिका निभाता है जिसे किडनी द्वारा पेशाब मार्ग से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है. यह अल्कोहल समेत दवाओं को भी तोड़ता है और यह शरीर में इंसुलिन व दूसरे हार्मोंस को तोड़ने के लिए भी जिम्मेदार होता है.
लिवर की सामान्य बीमारियां
जीवनशैली और खानपान की आदतों में होने वाले बदलावों के कारण आज जिस अंग पर सब से अधिक प्रभाव पड़ा है वह है लिवर. लिवर को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों में विषाणु, नुकसानदायक भोजन और अल्कोहल का इस्तेमाल भी हो सकता है. हेपेटाइटिस ए, बी और सी जैसे विषाणु लिवर को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
आज अल्कोहालिक पेय का अत्यधिक कोलैस्ट्रौल वाले जंक फूड के साथ उपभोग किया जाना एक नित्य जीवनशैली सी बन गया है, यह भी लिवर की बीमारियों का एक प्रमुख कारण है. इस से बीएमआई यानी बौडी मास इंडैक्स का स्तर बढ़ जाता है जो टाइप 2 डायबिटीज के बढ़ते जोखिम से संबंधित है और जो लिवर की गंभीर बीमारी से भी संबंधित है. अत्यधिक बीएमआई के बढ़ते जोखिम की वजह से जीवन के बाद के हिस्से में गंभीर लिवर बीमारी होने का खतरा कम उम्र से ही बना रहता है. लगातार अधिक वजन बने रहने और मोटापे ने भी दुनियाभर में लिवर की बीमारियों को बढ़ाने में भूमिका निभाई है.
लिवर को नुकसान पहुंचाने वाला एक अन्य कारक मोटापा है. मोटापा आज के समय में दुनियाभर की समस्या है और विकासशील देशों में भी वयस्कों एवं बच्चों दोनों में मोटापे की समस्या की वजह से यह एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गया है. उपलब्ध अध्ययनों से मोटापे से विभिन्न प्रकार के कैंसर पैदा होने की जानकारी मिली है. खासतौर पर मोटापे और लिवर कैंसर के बीच मजबूत संबंध है.
इस के अलावा नौन अल्कोहालिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) और अधिक गंभीर नौन अल्कोहालिक स्टियोहैपेटाइटिस (एनएएसएच) जैसी अन्य बीमारियों का भी खतरा है. एनएएसएच को लिवर के चरबीदार होने और जलन होने से पहचाना जाता है और माना जाता है कि इस से फाइब्रोसिस और सिरौसिस भी हो सकता है. सिरौसिस को लिवर कैंसर के जोखिम के कारण के तौर पर जाना जा सकता है. दरअसल, अधिक लोगों के मोटापे से पीडि़त होने की
वजह से यह हेपेटाइटिस विषाणु की वजह से होने वाले संक्रमण के मुकाबले हैप्टोसैल्यूलर कार्सिनोमा की अहम वजह हो सकता है.
अत्यधिक मात्रा में अल्कोहल का इस्तेमाल करने की वजह से लिवर को गंभीर नुकसान हो सकता है. जब कोई व्यक्ति अत्यधिक मात्रा में अल्कोहल का इस्तेमाल करता है तो लिवर के सामान्य कामकाज में बाधा पैदा होती है. जिस से शरीर में रासायनिक असंतुलन हो सकता है. लिवर की कोशिकाएं बरबाद हो सकती हैं.
लिवर कैंसर के लक्षण
लिवर कैंसर के लक्षण प्रत्येक व्यक्ति में अलगअलग होते हैं और इन में से कोई लक्षण दूसरे लक्षण की वजह से हो सकता है.
– वजन में कमी.
– बुखार आना.
– पेट में सूजन.
– उबकाई और उलटी होना.
– भूख में कमी या थोड़ा खाना खाने के बाद ही पेट भरा महसूस होना.
– सामान्य कमजोरी लगातार थकान बनी रहना.
– दायीं तरफ पेट के ऊपरी हिस्से में या दाएं कंधे में होना वाला दर्द.
– लिवर का बड़ा आकार (हैप्टोमीगली) पसलियों के नीचे दायीं तरफ एक बनावट की तरह महसूस होता है.
– स्प्लीन का बड़ा आकार पसलियों के नीचे बायीं तरफ एक बनावट की तरह महसूस होता है.
– पीलिया जो त्वचा व आंखों में पीलेपन के तौर पर दिखाई देता है. पीलिया तब होता है जब लिवर अच्छी तरह काम नहीं करता है.
चिकित्सकीय प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण के साथ गंभीररूप से खराब हो चुके लिवर वाले मरीज लिवर प्रत्यारोपण का विकल्प चुन सकते हैं. उन के लिए इस की आधारभूत प्रक्रिया को समझना जरूरी है.
देखभाल करने के लिहाज से लिवर सरल अंग है लेकिन उसे वह महत्त्व नहीं मिलता जिस का वह हकदार है. अपने विभिन्न प्रकार के कार्यों की वजह से इस पर विषाणुओं, जहरीले पदार्थों, खाने और पानी में मौजूद मिलावट व बीमारियों का असर पड़ता है. लेकिन यह परेशानी में होने के बाद भी शिकायत करने के लिहाज से सुस्त होता है क्योंकि यह शरीर का एक मजबूत और सख्त हिस्सा है.
अकसर लिवर की समस्याओं से पीडि़त लोगों को किसी गड़बड़ी का पता नहीं चलता क्योंकि उन्हें कुछ या न के बराबर ही लक्षण देखने को मिलते हैं. हालांकि लिवर की बीमारियों के उपचार का महत्त्वपूर्ण आधुनिकीकरण तरीका उपलब्ध है लेकिन संपूर्ण सामाधन नहीं है. इसलिए लिवर को नुकसान से बचाने के लिए सेहतमंद जीवनशैली अपनानी बेहद महत्त्वपूर्ण है और लिवर की बीमारियां पैदा करने वाले विषाणुओं के खिलाफ जरूरी टीके लेने जरूरी हैं.
(डा. गौरदास चौधरी, लेखक गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मैमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट के निदेशक हैं.)