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‘‘उम्र उम्र की बात होती है. जवानी में जो अच्छा लगता है बुढ़ापे में अकसर अच्छा नहीं लगता. इसी को तो कहते हैं जेनरेशन गैप यानी पीढ़ी का अंतर. जब मांबाप बच्चे थे तब वे अपने मांबाप को दकियानूसी कहते थे. अब जब खुद मांबाप बन गए हैं तो दकियानूसी नहीं हैं. अब बच्चे उद्दंड और मुंहजोर हैं. मतलब चित भी मांबाप की और पट भी उन्हीं की. किस्सा यहां समाप्त होता है कि मांबाप सदा ही ठीक थे, वे चाहे आप हों चाहे हम.’’

राघव चाचा मुसकराते हुए कह रहे थे और मम्मीपापा कभी मेरा और कभी चाचा का मुंह देख रहे थे. राघव चाचा शुरू से मस्तमलंग किस्म के इनसान रहे हैं. मैं अकसर सोचा करता था और आज भी सोचता हूं, क्या चाचा का कभी किसी से झगड़ा नहीं होता? चिरपरिचित मुसकान चेहरे पर और नजर ऐसी मानो आरपार सब पढ़ ले.

‘‘इनसान इस संसार को और अपने रिश्तों को सदा अपने ही फीते से नापता है और यहीं पर वह भूल कर जाता है कि उस का फीता जरूरत के अनुसार छोटाबड़ा होता रहता है. अपनी बच्ची का रिश्ता हो रहा हो तो दहेज संबंधी सभी कानून उसे याद होंगे और अपनी बच्ची संसार की सब से सुंदर लड़की भी होगी क्योंकि वह आप की बच्ची है न.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो, राघव,’’ पिताजी बोले, ‘‘साफसाफ बात करो न.’’

‘‘साफसाफ ही तो कर रहा हूं. सोमू के रिश्ते के लिए कुछ दिन पहले एक पतिपत्नी आप के घर आए थे...’’

पिताजी ने राघव चाचा की बात बीच में काटते हुए कहा था, ‘‘आजकल सोमू के रिश्ते को ले कर कोई न कोई घर आता ही रहता है. खासकर तब से जब से मैं ने अखबार में विज्ञापन दिया है.’’

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