फिल्म रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः अतुल अग्निहोत्री,अल्विरा खान अग्निहोत्री,भूषण कुमार,किशन कुमार व निखिल नमित

निर्देशकः अली अब्बास जफर

पटकथा व संवाद लेखकः अली अब्बास जफर व वरूण वी शर्मा

संगीतकारःविशाल शेखर

कैमरामैनः मार्सिन लास्कावी

कलाकारः सलमान खान,जैकी श्राफ, कटरीना कैफ,दिशा पटनी,सुनिल ग्रोवर, सोनाली कुलकर्णी,तब्बू,सतीश कौशिक,ब्रजेंद्र काला,मुश्ताक खान, आसिफ शेख,नोरा फतेही,मानव विज,शशांक अरोड़ा व अन्य.

अवधिः 2 घंटे 47 मिनट

2014 की दक्षिण कोरिया की सर्वाधिक सफल फिल्म ‘ओडे टू माई फादर’ के अधिकार खरीदकर फिल्मकार उसका भारतीयकरण करते हुए फिल्म ‘भारत’ लेकर आए हैं. फिल्म में एक बेटा अपने पिता के आदेश का पालन करने के लिए किस तरह अपनी जिंदगी के 62 साल जीता है, उसकी कहानी है. फिल्मकार व सलमान खान का दावा है कि यह फिल्म भारत की आजादी से 2010 तक की आम इंसान भारत की यात्रा है.‘सुल्तान’और‘ टाइगर जिंदा है’ जैसी सफल फिल्म देने वाले अली अब्बास जफर ‘भारत’ में मात खा गए हैं. कोरियन फिल्म ‘ओडे टू माई फादर’ में अपने अनुपस्थित पिता को निराश न करने के लिए असाधारण चुनौतियों का सामना करने के लिए खड़े एक बेटे की कथा बयां की गयी हैं, मगर ‘भारत’ में सब कुछ गडमड है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है 2010 में दिल्ली के किसी इलाके में स्थित दुकान ‘हिंद राशन स्टोर’से.कुछ भवन निर्माता इस दुकान को खरीदकर उस इलाके में माल खड़ा करना चाहते हैं. मगर भारत (सलमान खान) अपनी दुकान नहीं बेचना चाहते. उसके बाद वह 15 अगस्त को अपना सत्तरवां जन्मदिन मनाने के लिए पूरे परिवार के साथ अटारी रेलवे स्टेशन जाते हैं, जहां पर वह परिवार के बच्चों को अपनी कहानी सुनाते हैं. तब कहानी 1947 में पाकिस्तान स्थिति लाहौर के पास मीरपुर से शुरू होती है. मीरपुर रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर (जैकी श्रौफ) के दो बेटे आठ साल के भारत व तथा दो बेटियां गुड़िया व महक है. 14 अगस्त 1947 को देश के बंटवारे के साथ भड़के खूनी दंगों के चलते स्टेशन मास्टर अपना सामान बांध कर पूरे परिवार के साथ भारत लौटने के लिए ट्रेन पकडने की कोशिश करते हैं. वह पत्नी, एक बेटे व बेटी महक को लेकर वह ट्रेन की छत पर चढ़ जाते हैं. पर ट्रेन की छत पर चढ़ते समय आठ साल के भारत के हाथ से उसकी बहन गुड़िया का हाथ छूट जाता है और वह नीचे गिर जाती है. भारत के पिता अपनी बेटी गुड़िया को लेने के लिए नीचे उतरते हैं और ट्रेन चल देती है. तब भारत के पिता भारत से कहते हैं कि वह दिल्ली में अपनी बुआ की दुकान ‘हिंद राशन स्टोर’पर जाए.व एक दिन उसी दुकान पर आएंगे,तब तक वह अपने पूरे परिवार को बांध कर रखे.भारत अपने पिता की इस बात को गॉंठ बांध लेता है.

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दिल्ली में बुआ की दुकान पर भारत, उसकी मां व छोटे भाई बहन को शरण मिल जाती है. पर उसे पता चलता है कि आर्थिक हालात अच्छे नहीं है. उसके फूफा दिन में भी दुकान पर बैठकर शराब पीते रहते हैं. भारत की मां (सोनाली कुलकर्णी) सिलाई का काम करना शुरू करती है. भारत भी पैसा कमाना चाहता है. रिफ्यूजी कैंप के पास उसकी दोस्ती अपनी हम उम्र बिलायत खान से हो जाती है. दोनों मशहूर ‘द गे्रट रशियन सर्कस’ देखकर उसमें काम करने लगते हैं. सर्कस में काम करते हुए भारत (सलमान खान) व बिलायती खान (सुनील ग्रोवर) युवा हो जाते हैं. भारत सर्कस में मौत का कुंआ खेल में खतरनाक मोटर बाइक स्टंट करते हैं. एक दिन इसी खेल के दौरान छोटू अपना पैर टुड़वा बैठता है. तब भारत व बिलायत खान सर्कस को अलविदा कह देते हैं. भारत से पे्रम करने वाली राधा (दिशा पटनी) भी उसे नहीं रोकती.

फिर दोनों को पता चलता है कि सउदी अरब में तेल मिला है और वहां के लिए 90 मजदूरों की भर्ती की जा रही है. भारत व बिलायती खान को कुमुद रैना (कटरीना कैफ) नौकरी दे देती हैं. सउदी अरब में काम के दौरान ही कई घटनाक्रम घटित होते है. भारत की बहादुरी और बात करने के तरीके से प्रभावित होकर कुमुद रैना सरेआम घोषणा करती है कि वह भारत से प्यार करती है और शादी करना चाहती है. भारत, कुमुद को अपनी कहानी सुनाते हुए यह कह कर शादी करने से इंकार कर देता है कि वह अपने पिता के वचन को पूरा करने के बीच में किसी को आने नही देना चाहता. कुमुद को दुःख होता है, पर प्रभावित होती है.

सउदी अरब से वापस लौटते ही भारत अपनी छोटी बहन महक की शादी उसकी पसंद के लड़के से करता है.शादी के दिन ही कुमुद उसके घर पहुंच जाती है और भारत की मां से सारी बात बताकर भारत के साथ बिना शादी किए रहने की इजाजत हासिल कर लेती हैं. इसी बीच कुमुद को दूरदर्शन पर समाचार पढ़ने की नौकरी मिल जाती है.

इसी बीच भारत की बुआ का देहांत हो जाता है.भारत व विलायत पढ़ाईकर हाईस्कूल पास करते हैं.भारत को रेलवे में नौकरी मिलती है. पर तभी भारत के लिए बुआ की दुकान ‘ हिंद राशन स्टोर’ खरीदना जरुरी हो जाता है. क्योंकि उसे यकीन है कि उसके पिता एक न एक दिन ही आएंगे. इसलिए भारत और बिलायत खान मालवाहक जहाज पर मैकेनिक की नौकरी करने लगते हैं. जहां वह समुद्री लुटेरों पर विजय हासिल करते हैं. वहीं एक विदेशी से बिलायती खान शादी कर लेते हैं. वापस आकर ‘हिंद राशन स्टोर’ खरीद लेते हैं.

तभी जीटीवी की शुरूआत होती है और कुमुद रैना को क्रिएटिब डायरेक्टर की नौकरी मिल जाती है.1947 में भारत व पाकिस्तान के बिछुड़ों को मिलवाने के लिए ‘मेरे अपने’ कार्यक्रम करती है. इसी कार्यक्रम में भारत अपनी बहन गुड़िया (तब्बू) से मिलता है, जो कि अब लंदन में रह रही है.

इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. जहां पर भारत की दुकान है, उस पूरे बाजार को तोड़कर मौल बनाने के लिए बिल्डर साजिश रचता है. कुछ गुडों से 70 साल की उम्र में भारत को मारा मारी भी करनी पड़ती है. अंत में महक के पति की बात सुनने के बाद भारत को लगता है कि हर किसी के विकास के लिए दुकान का मोह छोड़ना चाहिए. फिर वह अपने पिता से माफी मांगता है कि वह जहां भी हो खुश रहें. और खुद अपने हाथों दुकान को तोड़ना शुरू करता है.

लेखन व निर्देशनः

किसी विदेशी सफलतम फिल्म का भारतीयकरण करते हुए कितनी बुरी फिल्म बनायी जा सकती है,उसका उदाहरण है फिल्म‘‘भारत’’.इसमें जिस तरह से भारतीय इतिहास के घटनाक्रमों को पिराया है,उससे फिल्मकार की नीयत पर कई सवाल उठते हैं.यह फिल्म कहीं से भी एक आम भारतीय की यात्रा नहीं लगती.फिल्म की शुरूआत के पहले दृश्य से ही सलमान खान सुपर हीरो के रूप में ही नजर आते हैं.फिल्म 1947 से 2010 तक के भारतीय इतिहास की झलकपेश करती है,पर कुछ भी सार्थक बात नही कहती.पूरी फिल्म देखकर एक ही बात समझ में आती है कि यह एक खास परिवार व राजनीतिक दल का अपरोक्ष रूप से  महिमा मंडन करने के लिए बनी है.फिल्म में दृश्य है कि भारत की बहन महक को जवाहर लाल नेहरु पति के रूप चाहिए.फिर पं.जवाहर लाल नेहरु की मृत्यू पर भारत व उसके परिवार का गमगीन होना,वित्त मंत्री के रूप में डॉं.मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार कार्यक्रम के चलते जीटीवी की ुशुरूआत जैसे कई घटनाक्रमों का चित्रण है.फिल्म देखकर यह अहसास होता है कि लेखक द्वय अली अब्बास जफर और वरूण शर्मा हमारे अपने देश के कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाक्रमों से अनभिज्ञ हैं.

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फिल्मकार इस मूल मुद्दे से भी भटक गए कि भारत के पिता ने उसका नाम भारत क्यों रखा था? भारत के नाम के साथ ‘सरनेम’ क्यों नहीं लगाया?यदि फिल्मकार इस मुद्दे को ध्यान मे रखकर एक आम भारतीय की यात्रा को चित्रित करते तो फिर 1975 का आपातकाल, 1984 के सिख दंगे,‘मंडल कमीशन’, ‘कमंडल’,बाबारी मस्जिद विध्वंश,राम मंदिर,मंुबई दंगे सहित कई ज्वलंत ऐतिहासिक घटनाक्रमों को नजरंदाज न कर पाते.‘मंडल कमीशन’के ही चलते नौकरी पाने में इंसान के नाम की नहीं ‘सरनेम’की महत्ता बढ़ी.कुल मिलाकर फिल्मकार ने अपनी सुविधा नुसार ऐतिहासिक घटनाक्रमों का चयन किया है,परिणामतः वह विषयवस्तु के साथ न्याय नहीं कर पाए.छद्म देशभक्ति से ओतप्रोत इस फिल्म के एक दृश्य में भारत अपने साथियों के साथ पूरा राष्ट्गान गाते हैं.तो क्या लेखकद्वय अली अब्बास जफर व वरूण शर्मा देश के ऐतिहासिक घटनाक्रमो से पूरी तरह से अनभिज्ञ है.

पूरी फिल्म में ‘‘मेरे अपने’’का 15 से 20 मिनट का दृश्य बेहतरीन दृश्य कहा जा सकता है. यह दृश्य दर्शकों के दिलों को छूता है. फिल्म के क्लायमेक्स को बेहतर बनाया जा सकता था. फिल्म में सर्कस का पूरा दृश्य, माल वाहक जहाज के दृश्य जबरन ठूंसकर फिल्म को बेवजह लंबा किया गया है.फिल्म में कुछ गाने भी जबरन ठूंसे गए हैं. जब हम फिल्म में किसी कालखंड का चित्रण करते हैं, तो उस कालखंड के परिवेश, वेशभूषा आदि पर भी काफी ध्यान देना पड़ता है, मगर यहां फिल्मकार ने इन बातों पर कोई तवज्जो नही दी.

निर्देशक के तौर पर अली अब्बास जफर ने दर्शकों को चमक दमक और भव्यसेट से मोहित करने का असफल प्रयास किया है. फिल्म में भारत व उनकी मां के बीच कोई इमोशनल दृश्य नहीं है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो सलमान खान काफी बंधे हुए नजर आते हैं. उनका अभिनय थका हुआ है.हर दृश्य में उनका सपाट चेहरा ही नजर आता है.सत्तर साल की उम्र के किरदार में तो वह कुछ ज्यादा ही निराश करते हैं.भारत के दोस्त विलायती खान के किरदार में सुनील ग्रोवर ने खुलकर अभिनय किया है.सुनील ग्रोवर ने जता दिया कि वह हर इमोशन के साथ खेलने में माहिर हैं. उनकी जितनी तारीफ की जाए कम ळै.कुमुद रैना के किरदार में कटरीना कैफ प्रभावित नही करती. वह सिर्फ खूबसूरत लगी हैं.उनकी अभिनय प्रतिभा से हर दर्शक प्रभावित होता है. जैकी श्राफ, तब्बू,ब्रजेंद्र काला, सोनाली कुलकर्णी,शशांक अरोड़ा, आसिफ शेख जैसे कई कलाकारों की प्रतिभा को जाया किया गया है. सलमान खान के प्रशंसक इसे जरुर देखना चाहेंगे.

Edited by Rosy

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