कुछ अलग करने का जज्बा ही आपको मंजिल तक पहुंचाती है और ऐसा ही कुछ काम कर रही है बाइकिंग क्वीन डा. सारिका मेहता, जिन्होंने बिहैवियर साइंस में पीएचडी कर प्रोफेशनली एक मनोवैज्ञानिक बनी, लेकिन उनका पैशन एक पर्वतारोही और बाइकर क्वीन बनना भी रहा, जिसे मंजिल तक पहुंचाने में उसके पिता और पति का बहुत बड़ा सहयोग रहा है. उनके इस काम के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है. एडवेंचर प्रिय और हंसमुख स्वभाव की डा. सारिका अभी विमेंस प्राइड के लिए 25 देशों से गुजर रही हैं, जिसमें उनके साथ उनकी दो साथी जिनल शाह और रुताली पटेल भी है. सारिका से इस एडवेंचर पूर्ण जर्नी के बारें बात करना बहुत रोचक था.आइये जाने उन्हीं से उनकी कहानी.

प्र. बाइकिंग क्वीन बनने की प्रेरणा कैसे मिली?

डाक्टर होने के साथ-साथ मेरा पैशन माउंटेनियरिंग है, माउंटेन से जब मैं घर आई, तो उस समय मेरे एक दोस्त स्पोर्ट्स बाइक को दिखाने मेरे पास ले आये. मैं उसे देखकर उत्साहित हुई और ज्योंही बैठने गयी, तो उन्होंने बैठने से मना कर दिया, क्योंकि ये हैवी बाइक है और मैं इस पर नहीं बैठ सकती. उनका कहना था कि पहाड़ चढ़ने और बाइक चलाने में बहुत अंतर होता है. यही बात मेरे मेरे मन में बैठ गयी और मेरे अंदर जुनून सवार हो गया कि मुझे बाइक चलानी है. फिर मैंने पहले पति जिग्नेश मेहता की बाइक से सीखना शुरू किया. पति ने ही मुझे पहले बाइक चलाना सिखाया, लेकिन उन्हें भी नहीं लगा कि मैं बाइक चलाने को इतना सीरियसली ले लूंगी, पर बचपन से मुझे किसी भी काम को सौ प्रतिशत करने की इच्छा रही है. इसके लिए मैं उस बारें में सारी बातें जानकारी इकठ्ठा भी करती हूं. यहां मैंने बाइक की सारी तकनीक सीखी. उस समय हेलमेट न पहनने की वजह से दुर्घटनाएं खूब होती थी. इसलिए ‘साइकोलोजी बिहाइंड राइडिंग’ एक मुद्दा लेकर पुलिस डिपार्टमेंट के पास गयी और पूरी मुहीम चलायी. इसमें ‘सेफ्टी फर्स्ट’ मेरा मुख्य कैम्पेन था, जिसमें बच्चों को बाइक की पूरी जानकारी के साथ उन्हें हेलमेट पहनना भी अनिवार्य किया गया, क्योंकि अधिकतर बच्चों को जान गलत बाइक चलाने से होती है, जिसमें उनके जान के अलावा दूसरे की भी जान जाती है. ये अभियान सभी को बहुत पसंद आई और वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने मुझे विदेश में भी इसे फ़ैलाने की मुहीम में शामिल किया.

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