लेखक- अनिल मिश्रा

ट्रेन तेज गति से दौड़ी चली जा रही थी. सहसा गोमती बूआ ने वृद्ध सोमनाथ को कंधे से झकझोरा, ‘‘बाबूजी, सुषमा पता नहीं कहां चली गई. कहीं नजर नहीं आ रही.’’

सोमनाथ ने हाथ ऊंचा कर के स्विच दबाया तो चारों ओर प्रकाश फैल गया. फिर वे आंखें मिचमिचाते हुए बोले, ‘‘आधी रात को नींद क्यों खराब कर दी... क्या मुसीबत आन पड़ी है?’’

‘‘अरे, सुषमा न जाने कहां चली गई.’’

‘‘टायलेट की ओर जा कर देखो, यहीं कहीं होगी...चलती ट्रेन से कूद थोड़े ही जाएगी.’’

‘‘अरे, बाबा, डब्बे के दोनों तरफ के शौचालयों में जा कर देख आई हूं. वह कहीं भी नहीं है.’’

बूआ की ऊंची आवाज सुन कर अन्य महिलाएं भी उठ बैठीं. पुष्पा आंचल संभालते हुए खांसने लगी. देवकी ने आंखें मलते हुए बूआ की ओर देखा और बोली, ‘‘लाइट क्यों जला दी? अरे, तुम्हें नींद नहीं आती लेकिन दूसरों को तो चैन से सोने दिया करो.’’

‘‘मूर्ख औरत, सुषमा का कोई अतापता नहीं है...’’

‘‘क्या सचमुच सुषमा गायब हो गई है?’’ चप्पल ढूंढ़ते हुए कैलाशो बोली, ‘‘कहीं उस ने ट्रेन से कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली?’’

बूआ ने उसे जोर से डांटा, ‘‘खामोश रह, जो मुंह में आता है, बके चली जा रही है,’’ फिर वे सोमनाथ की ओर मुड़ीं, ‘‘बाबूजी, अब क्या किया जाए. छोटे महाराज को क्या जवाब देंगे?’’

‘‘जवाब क्या देना है. वे इसी ट्रेन के  फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे हैं. अभी मोबाइल से बात करता हूं.’’

सोमनाथ ने छोटे महाराज का नंबर मिलाया तो उन की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, बाबा, काहे नींद में खलल डालते हो?’’

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