लेखक- अशरफ खान

बतौर उर्दू टीचर जमाल की पोस्टिंग एक छोटे से गांव काजीपुर में हुई थी. वह बस से उतर कर कच्चे रास्ते से गुजरता हुआ स्कूल पहुंचा था.

अभी जमाल बैठा प्रिंसिपल साहब से बातें कर ही रहा था कि एक 10-11 साल का बच्चा वहां आया और उसे कहने लगा, ‘‘जमींदार साहब ने आप को बुलाया है.’’

यह सुन कर जमाल ने हैरानी से प्रिंसिपल साहब की तरफ देखा.

‘‘इस गांव के जमींदार बड़े ही मिलनसार इनसान हैं... जब मैं भी यहां नयानया आया था तब मुझे भी उन्होंने बुलाया था. कभीकभार वे खुद भी यहां आते रहते हैं... चले जाइए,’’ प्रिंसिपल साहब ने कहा तो जमाल उठ कर खड़ा हो गया.

जब जमाल जमींदार साहब के यहां पहुंचा तो वे बड़ी गर्मजोशी से मिले. सुर्ख सफेद रंगत, रोबीली आवाज के मालिक, देखने में कोई खानदानी रईस लगते थे. उन्होंने इशारा किया तो जमाल भी बैठ गया.

‘‘मुझे यह जान कर खुशी हुई कि आप उर्दू के टीचर हैं, वरना आजकल तो कहीं उर्दू का टीचर नहीं होता, तो कहीं पढ़ने वाले छात्र नहीं होते...’’

जमींदार साहब काफी देर तक उर्दू से जुड़ी बातें करते रहे, फिर जैसे उन्हें कुछ याद आया, ‘‘अजी... अरे अजीजा... देखो तो कौन आया है...’’ उन्होंने अंदर की तरफ मुंह कर के आवाज दी.

एक अधेड़ उम्र की औरत बाहर आईं. वे शायद उन की बेगम थीं.

‘‘ये नए मास्टर साहब हैं जमाल. हमारे गांव के स्कूल में उर्दू पढ़ाएंगे,’’ यह सुन कर जमींदार साहब की बेगम ने खुशी का इजहार किया, फिर जमाल से पूछा, ‘‘घर में और कौनकौन हैं?’’

जमाल ने कम शब्दों में अपने बारे

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