धर्म के गुणगान करने वाले यह साबित करने के लिए कि धर्म प्रेम सिखाता है वैमनस्य नहीं, इस कहानी को बारबार दोहराएंगे कि दिल्ली के त्रिलोकपुरी में एक मसजिद के सामने एक भजन मंडली के लगातार जागरण करने पर गत अक्तूबर में हुए दंगे में खूब तोड़फोड़, हिंसा हुई और मरा तो कोई नहीं पर जख्मी कई हुए. तो इस दंगे के दौरान एक सिख हरबंस सिंह ने एक मुसलिम मुहम्मद कुरबान को अपने घर में पनाह दी. ये वही हरबंस सिंह हैं, जिन्हें उन के मुसलिम पड़ोसियों ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेसियों के इशारों पर हुए सिख दंगों में पनाह दी थी. हरबंस सिंह का कहना है कि यह तो उस का मानवीय पक्ष है.
क्या यह धर्म का उज्ज्वल पक्ष है? नहीं. यह मानवता व सामाजिकता का उज्ज्वल पक्ष है, जो धर्म की फैलाई कटुता, दुश्मनी, वैमनस्यता, घृणा, आतंक के बावजूद जिंदा है. अगर धर्म नहीं होता तो हरबंस सिंह सिख नहीं होते, मुहम्मद कुरबान मुसलिम न होते. दोनों जो भी होते, पड़ोसी होते, साथ काम करने वाले होते, एकदूसरे को सहयोग देने वाले होते.
विज्ञान और तकनीक के बावजूद, तर्क, सोचविचार के बावजूद धर्म का असल रूप, खूंख्वार रूप आज भी दुनिया भर में कायम है और दुनिया का लगभग हर कोना धार्मिक आतंक के कारण भयभीत है. जिस धर्म को सुरक्षाकवच समझा जाता है, असल में वह तो उस चीनी के लेप का बना है, जिसे लपलपाने के लिए दूसरे धर्म के काले विषैले कीड़ों जैसे लोग हर समय बेचैन रहते हैं. हमारे देश की राजनीति कांग्रेस के जन्म के समय से ही धर्म पर आधारित रही है. पहले बाल गंगाधर तिलक व गोपाल कृष्ण गोखले ने कांग्रेस को धर्ममयी किया फिर महात्मा गांधी ने रघुपति राजा राममयी कर दिया. जिस का नतीजा यह हुआ कि मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस को ब्राह्मण पार्टी कह कर छोड़ दिया. अब कांग्रेसी धर्म का लबादा भारतीय जनता पार्टी ने लपक लिया है और उसे धोपोंछ कर आधुनिक डिजाइन में सिलवा लिया है पर धर्म तो धर्म ही है.
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