सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि मैडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैगनैंसी ऐक्ट को संशोधित कर के और भी लचीला बनाया जाए और गर्भवती औरत के सुखदुख की भी सोची जाए. यह सुझाव अच्छा है पर बहुत कम है. असल में गर्भपात पर औरत का अपना अधिकार होना चाहिए और यह फैसला कि गर्भपात कब करा जाए डाक्टर और गर्भवती के बीच होना चाहिए. यदि हाथ में फोड़ा हो जाए और गैंगरीन होने का डर हो तो हाथ काटने का फैसला डाक्टर और मरीज का है, सरकार बीच में कहां से आ गई?
आजकल स्तन व गर्भाशय कैंसरों की बाढ़ सी आई हुई है और डाक्टर मरीज की सहमति से बिना सरकारी अनुमति से उन्हें निकाल सकते हैं. गर्भस्थ शिशु की भी यही स्थिति है. वह औरत का अंग है, सरकार का नहीं और केवल धार्मिक कारणों से सरकारों ने इस में दखल दे रखा है. अनचाहे गर्भ का गर्भपात जीव हत्या नहीं है, एक अनचाही बीमारी से छुटकारा है.
बच्चों के लिए तो लोग तरसते हैं. आईवीएफ का उद्योग आज अरबों रुपयों का है. लाखों युगल बच्चा पाने के लिए डाक्टरों के आगे कतारें लगाए खड़े रहते हैं. बहुत से तो स्वामियों, साधुओं और मुल्लाओं से आशीर्वाद तक ले आने में नहीं हिचकते कि असल में पिता चाहे कोई हो नाम तो पति का ही होगा. ऐसे में जहां निपूती को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता हो वहां बच्चों को कोई अकारण ही मरने थोड़े देगा.
यह न सोचें कि छूट देने पर लोग हजारों की तादाद में गर्भ गिराने लगेंगे. यह तो अपवाद के रूप में ही होगा जब किसी कारण 20 सप्ताह से ज्यादा देर होने लगे. गर्भपात जितनी देर से होता है, उतना जोखिम बढ़ जाता है और यह डाक्टर व गर्भवती दोनों जानते हैं. गर्भ से छुटकारा केवल विशेष परिस्थितियों में लिया जाता है.
गर्भपात तभी कराया जाता है जब अनिवार्य हो. विवाहपूर्व गर्भ ठहरा हो या 2 बच्चों के होने के बाद ठहरा हो या फिर किसी तरह से पराए का हो तभी गर्भपात की नौबत आती है. यह फैसला 20 सप्ताह में करा जाए या 30 में या फिर 40 में, उसे डाक्टर और महिला पर छोड़ दें. अगर बच्चे के गर्भपात के कारण गर्भवती महिला की मृत्यु का अंदेशा हो तो भी फैसला उन दोनों का है, क्योंकि यह गर्भवती ही जानती है कि अगर बच्चा हो गया तो क्या परिणाम होगा. उस बच्चे को कूड़ा घर में मरने के लिए छोड़ देना सही नहीं, औपरेशन टेबल पर उस का अंत ज्यादा उचित है.
आजकल मैडिकल कारणों से भी यदि बच्चे का नियत अवधि के बाद गर्भपात कराना हो तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है जहां जहांगीरी घंटी से काम नहीं चलता लाखों का वकील करना पड़ता है. एक तो अनचाहा गर्भ, फिर गर्भपात का खर्च और फिर ऊपर से कानूनी खर्च. इन सब का औचित्य क्या है?
असल में सरकार को गर्भपात को अपराधों की श्रेणी में रखना ही नहीं चाहिए और गर्भ को मुक्ति देनी चाहिए. मिसकैरिज और मैडिकल टर्मिनेशन में कोई अंतर नहीं.