इस बार बजट निर्मला सीतारमण ने पेश किया था पर उनके साड़ी पहनने का लाभ साड़ी पहनने वालियों को कतई नहीं हुआ. महिला वित्त मंत्री का यह पहला बजट औरतों के लिए तोहफे में कुछ नहीं लाया. ऐसा नहीं कि औरतों को सरकारी बजटों से कुछ लेनादेना नहीं होता. असल में घरेलू आमदनी पर सारा कब्जा औरतों का ही होता है और वे ही जानती हैं कि पैसा कब हाथ में आता है और कब चला जाता है.

निर्मला सीतारमण के पास ऐसे कई मौके थे जिन से वे औरतों को विशेष राहत दे सकती थीं. वे उच्च शिक्षा लड़कों के लिए नहीं तो लड़कियों के लिए सस्ती कर सकती थीं. उलटे यूजीसी को ढांचा बदलने का प्रस्ताव दे दिया गया, जिस से शिक्षा और महंगी हो सकती है. वे औरतों व लड़कियों के होस्टलों के निर्माण को प्रोत्साहन दे सकती थीं, जिस से लड़कियां घर से बाहर जाने की हिम्मत जुटा सकतीं और औरतें अकेले होने पर भी सिर पर छत पा सकतीं. वे औरतों के लिए रेल, हवाईजहाज व बस सेवाओं में छूट दे सकती थीं जैसा अरविंद केजरीवाल दिल्ली मैट्रो में करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि औरतें घरों की जेलों से निकल सकें.

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वे मंदिरों और आश्रमों पर टैक्स लगा सकती थीं ताकि ऐसी जगहें ही कम हो जातीं जहां औरतों को गुमराह किया जाता है, उन्हें पुरुष सेवा के उपदेश दे कर उन का ब्रेनवाश किया जाता है. वे औरतों के अकेले पर्यटन को प्रोत्साहन दे सकती थीं ताकि बजाय तीर्थस्थलों में एडि़यां और नाक घिसने के, वे देश के कोनेकोने से परिचित हो सकतीं. औरतों को तलाक के मामले में तुरंत न्याय चाहिए. इसलिए कम से कम घरेलू विवाद 3-4 माह में तय हो जाएं इतनी पारिवारिक अदालतें बनाने का प्रबंध किया जा सकता था. औरतों के लिए विशेष पुलिस फोर्स का गठन किया जा सकता था ताकि औरतें अपनी शिकायतें आसानी से दर्ज करा सकतीं. निर्मला सीतारमण का सारा बजट बड़े उद्योगों पर केंद्रित है और कहीं से नहीं लगता कि यह महिला नेता महिलाओं की कोई आशा हैं. जब वे रक्षा मंत्री थीं तो भी उन्होंने सिवा भाजपा की रक्षा करने के औरतों की सुरक्षा या सैनिकों की औरतों की समुचित देखभाल के कतई फैसले नहीं लिए. उज्ज्वला स्कीम कुछ ज्यादा को दे कर या व्यवसाय चलाने वालियों को 1 लाख का कर्ज देने का कागजी वादा किया है जिस से खूब मेजें थपथपाई गईं पर साल के आखिर तक कुछ न होगा.

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