लेखक डा. प्रत्यूष गुलेरी

सोमवती अमावस्या पर हरिद्वार में महाकुंभ स्नान की बात श्रीकर टाल नहीं पाया. पत्नी ने जो दलील दी वह कुछ इस तरह थी, ‘कुसुम कह रही हैं यह शाही स्नान 714 वर्षों बाद आ रहा है. यह जीवन तो संयोगों का मेला है. आप चल पड़ो तो ठीक है वरना हम तो जाने वाली हैं.’

सोमवती अमावस्या पर देशविदेश के शीर्ष महंतों, संतों, साधुओं के स्नान से पूर्व कुसुम चाहती हैं कि वे इस से पहले संक्रांति स्नान और अमावस्या के बाद पहला नवरात्र स्नान भी कर लें तो जीवन का महापुण्य कमा लेंगी. श्रीमती ने अपनी अगली बात भी श्रीकर से स्वीकार करवा ली.

संक्रांति से पूर्व वे हरिद्वार पहुंच गए. कनखल बाईपास में एक होटल बुक था. गंगा की हर की पौड़ी यहां से

4 किलोमीटर दूर थी. भीड़ को देखते हुए सुबह 5 बजे स्नान के लिए जाने का निर्णय लिया गया.

श्रीकर ने पत्नी से कहा, ‘‘भीड़ के रेले के रेले पूरी रात से आते देख रहा हूं. लगता है सीधे रास्ते से सुबह पुलिस जाने नहीं देगी. तुम कुसुम, उन की बहन व भाभी को बता देना कि सुबह रिकशा, आटो कुछ भी नहीं मिलने वाला. पैदल ही चलना पड़ेगा 8-10 किलोमीटर. होटल वाले बता रहे थे ट्रैफिक पुलिस ने कुछ इस तरह से भीड़ को बांटा है ताकि कोई अनहोनी न घटे.

सुबह जब चले तो 3 घंटे का सफर  तय करने पर भी हर की पौड़ी नजर नहीं आ रही थी. बाईपास की सड़क से कई क्रौस, कई घाट, कई पुल पार कर लिए, तब कहीं उन्हें लगा कि अब हर की पौड़ी के पास पहुंच गए हैं. लग रहा था कि पूरा हिंदुस्तान यहीं उमड़ पड़ा है महाकुंभ स्नान के लिए. शाही स्नान पर नहाना मिले या नहीं, सब आज के ही दिन संक्रांति का पुण्य कमा लेना चाह रहे थे.

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