डायन बता कर महिलाओं की हत्या का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है. ऐसी घटनाएं अखबारों की सुर्खियां तो जरूर बनती हैं लेकिन बात आईगई हो जाती है. इस कुसंस्कारी प्रथा की आड़ में गंभीर अपराधों को अंजाम दिया जाता है. गांवदेहात या छोटे कसबों में रसूखदार, धनीमानी लोग ओझा, गुनीन, गुनिया, भोपा और तांत्रिकों के जरिए अनपढ़ व निरक्षर लोगों को उकसा कर महिलाओंपुरुषों को डायन, डाकन, डकनी, टोनही करार दे कर अपने स्वार्थ को साध लेते हैं.

ऐसा नहीं है कि डायन होने का आरोप केवल महिलाओं पर लगाया जाता है, कहींकहीं पुरुषों को भी इसी आरोप में प्रताडि़त किया जाता है. कुछ महीने पहले मेघालय के एक गांव में जब 4 लड़कियां एक अनजाने किस्म की बीमारी की चपेट में आ गईं और डाक्टर के इलाज का कोई फायदा नजर नहीं आया तो शामत आ गई गांव के एक बुजुर्ग पर. उस बुजुर्ग को बीमारी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया और उसे पाखाना खाने को मजबूर किया गया. विडंबना यह है कि पाखाना खिलाने का फैसला गांव की पंचायत में लिया गया था. इस के बाद दावा किया गया कि बुजुर्ग के पाखाना खाने के बाद ही चारों लड़कियों की सेहत में सुधार होना शुरू हुआ.

पश्चिम बंगाल के मालदह, दिनाजपुर, बीरभूम, बांकुड़ा, पुरुलिया और बंगलादेश की सीमा से सटे पश्चिम सिंहभूम व छोटानागपुर में डायन बता कर हत्या की घटनाएं आएदिन घटती रहती हैं. देखने में आया है कि डायन हत्या के पीछे केवल अंधविश्वास नहीं होता, बल्कि ज्यादातर मामलों के पीछे संपत्ति विवाद, जातिगत द्वेष या फिर राजनीतिक उद्देश्य होता है.

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