आर्थ्राइटिस अब हमारे देश की आम बीमारी बन चुका है और इस से पीडि़त व्यक्तियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. आर्थ्राइटिस से सिर्फ वयस्क ही नहीं, बल्कि आज के युवा भी पीडि़त हो रहे हैं. जिस की वजहें आज की मौडर्न जीवनशैली, खानपान, रहनसहन आदि हैं. आज हर व्यक्ति आराम चाहता है, मेहनत तो जीवनचर्या से खत्म हो चली है. फलस्वरूप ऐंडस्टेज आर्थ्राइटिस से पीडि़त अनेक रोगियों के पास जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता.

इस विषय पर मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल के डा. कौशल मल्हान, जो यहां के सीनियर और्थोपैडिक कंसल्टैंट हैं और घुटनों की सर्जरी के माहिर हैं से बातचीत की गई. वे पिछले 20 सालों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. उन का कहना है कि हमेशा से हो रही घुटनों की प्रत्यारोपण सर्जरी ही इस रोग से मुक्ति दिलाती है, पर यह पूरी तरह कारगर नहीं होती, क्योंकि सर्जरी के दौरान मांसपेशियां और टिशू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. परिणामस्वरूप जितना लाभ व्यक्ति को चलनेफिरने में होना चाहिए उतना नहीं हो पाता. इसलिए डा. कौशल मल्हान पिछले 7-8 साल से इस शोध पर जुटे रहे कि कैसे इस क्षति को कम किया जाए. अंत में उन्हें यह सफलता मिली और आज पिछले 3 सालों से वे अलगअलग आयुवर्ग के 900 से अधिक मरीजों का इलाज कर चुके हैं. एसिस्टेड तकनीक घुटनों के प्रत्यारोपण सर्जरी में परिशुद्धता के लिए प्रयोग में लाई जाती है. इस तकनीक से मांसपेशियों के कम क्षतिग्रस्त होने से सर्जरी के बाद व्यक्ति जल्दी चलनेफिरने लगता है और सर्जरी की गारंटी भी बढ़ती है. इस विधि से सर्जरी करने पर, रिकवरी जल्दी होती है व दर्द भी कम होता है.

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