निशा का गर्भ धारण हुए 3 महीने बीत चुके थे, लेकिन उसे हमेशा कमजोरी महसूस होती थी. जब वह डॉक्टर के पास आई, तो डौक्टर ने उसे थायराइड की जांच करने की सलाह दी. इससे पता चला कि उसका टीएसएच का स्तर बहुत बढ़ चुका है, जिससे बच्चे के दिमाग का विकास सही तरह से हुआ है या नहीं समझना मुश्किल था, ऐसे में उसे जन्म दिया जाय या टर्मिनेट किया जाय. इसे लेकर समस्या थी. निशा खुद भी ये समझ नहीं पा रही थी कि वह करें तो क्या करें. असल में हाइपोथायरोडिज्म अधिकतर महिलाओं को होता है, जिसमें थायराइड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बना पाता. ये एक आम बीमारी है और आजकल भारत में 10 में से 1 के लिए ये रिस्क बना हुआ है. जिसमें प्रेग्नेंट महिला 13 प्रतिशत से 44 प्रतिशत प्रभावित है. थायराइड में डिसऔर्डर माँ और बच्चा दोनों के लिए घातक होती है. समय पर एक साधारण स्क्रीनिंग टेस्ट से इसका इलाज संभव है.

इस क्षेत्र में अधिक जागरूकता को बढ़ाने के लिए इंडियन थायराइड सोसाइटी, एबोट के साथ मिलकर मेक इंडिया थायराइड अवेयर (MITA) कैम्पेन शुरू किया. इस अवसर पर इंडियन थायराइड सोसाइटी के सेक्रेटरी शशांक जोशी का कहना है कि अधिकतर महिलाओं की हाइपोथायराडिज्म होता है,जिसमें थायराड ग्लैंड उचित मात्रा में हर्मोन नहीं बनाता, ऐसे में सही समय में इसका इलाज करना जरुरी है ,क्योंकि इसका सौ प्रतिशत इलाज संभव है. इससे पीड़ित महिलाओं में अनियमित माहवारी और गर्भधारण करने में मुश्किल महसूस होती है. इसलिए गर्भधारण के तुरंत बाद टीएसएच की जांच करवा लेनी चाहिए,क्योंकि इसका प्रारंभिक लक्षण बहुत अधिक दिखाई नहीं पड़ता, इसलिए महिलाएं इसे नजरअंदाज करती है,पर कुछ लक्षण निम्न है,

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