सामान के बैगों से लदीफदी नेहा जब बाजार से घर लौटी तो पसीने से लथपथ हो रही थी. उसे पसीने से लथपथ देख कर उस की मां नीति दौड़ कर उस के पास गईं और उस के हाथ से बैग लेते हुए कहा," एकसाथ इतना सारा सामान लाने की जरूरत क्या थी? देखो तो कैसी पसीनेपसीने हो रही हो."
" अरे मां, बाजार में आज बहुत ही अच्छा सामान दिखाई दे रहा था और मेरे पास में पैसे भी थे, तो मैं ने सोचा कि क्यों ना एकसाथ पूरा सामान खरीद लिया जाए... बारबार बाजार जानाआना भी नहीं पड़ेगा."
"बाजार में तो हमेशा ही अच्छाअच्छा सामान दिखता है. आज ऐसा नया क्या था?"
"आज कुछ नहीं था, पर 4 दिन बाद तो है ना," नेहा ने मुसकराते हुए कहा.
"अच्छा, जरा बताओ तो 4 दिन बाद क्या है, जो मुझे नहीं पता. मुझे भी तो पता चले कि 4 दिन बाद है क्या?"
"4 दिन बाद दीवाली है मां, इसीलिए तो बाजार सामानों से भरा पड़ा है और दुकानों पर बहुत भीड़ लगी है."
"तब तो तुम बिना देखेपरखे ही सामान उठा लाई होगी?" नीति ने नेहा से कहा.
"मां, आप भी ना कैसी बातें करती हैं? अब इतनी भीड़ में एकएक सामान देख कर लेना संभव है क्या? और फिर दुकानदार को भी अपनी साख की चिंता होती है. वह हमें खराब सामान क्यों देगा भला?"
"चलो ठीक है. बाथरूम में जा कर हाथपैर धो लो, फिर खाना लगाती हूं," नीति ने बात खत्म करने के लिए विषय ही बदल दिया.
खाना खा कर नेहा तो अपने कमरे में जा कर गाना सुनने लगी और नीति सामान के पैकेट खोलखोल कर देखने लगी.
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