फुटबौल प्लेयर व लेखिका-सोना चौधरी

अपनी जिद और जनून के दम पर सोना चौधरी ने न केवल फुटबौल को अपनाया, बल्कि अपने शानदार खेल की बदौलत वे भारतीय महिला फुटबौल टीम की कप्तान भी बनीं. लेकिन हरियाणा के एक छोटे से गांव के एक किसान परिवार की इस लाडली के लिए फुटबौल अपनाना किसी जादुई चिराग को ढूंढ़ने से कम मुश्किल नहीं था. 80 के उस दौर में इन के इलाके में महिलाओं के खेलने के लिए कोई अलग से मैदान ही नहीं होता था. मगर सांसों में तो फुटबौल बसी थी, इसलिए सोना चौधरी ने हार नहीं मानी और अपनी मेहनत और लगन के दम पर पहले वे हरियाणा (1992-96) और बाद में भारत (1996-98) महिला फुटबौल टीम की कप्तान बनीं. उन की कप्तानी में भारतीय महिला फुटबौल टीम ने नेपाल और बंगलादेश में भी जा कर मैच खेले थे.

मुश्किल राह और उपलब्धियां

एक महिला खिलाड़ी को खेल और समाज से जुड़ी किनकिन मुश्किलों का समाना करना पड़ता है? इस सवाल पर सोना चौधरी ने बताया, ‘‘मैं ने इस खेल को इसलिए अपनाया था, क्योंकि मुझे इस का पैशन था. मेरी जिद और मेरे जनून ने मुझे फुटबौल का खिलाड़ी बनाया. किसी ने कहा था कि तुम लड़की हो, इसलिए फुटबौल नहीं खेल सकती. यह बात जैसे मुझे चुभ गई और मैं यह लंबा कदम उठा गई. इस के बाद मैं वहां तक चली गई जहां तक मैं ने सोचा भी नहीं था. उस समय तो इंडिया से खेलना ही ओलिंपिक खेलने जैसा था.

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‘‘इस खेल से मुझे लोगों का जो स्नेह मिला वही मेरी सब से बड़ी उपलब्धि है. हम जहां भी खेलते थे लोग हमें ढेर सारा सम्मान देते थे. उन पलों को मैं आज भी जीती हूं और रोमांच से भर जाती हूं.’’

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