कुछ दिन पहले सपना के यहां बच्चे की छठी का अवसर था. वहां बड़ी धूमधाम से सारे काम निबटाये जा रहे थे. ख़ुशी भरा माहौल था. खानेपीने का भी अच्छा प्रबंध था. तभी धूमधड़ाके के साथ हिज़ड़ों का समूह आ धमका. तालियां बजाते हुए उन्होंने बच्चे के दादा और घरवालों को घेर लिया. अपनी क्षमता के हिसाब से कहीं ज्यादा रकम उन लोगों ने हिजड़ों के हाथों में थमा दिया और बच्चे के सर पर हाथ फेरने का आग्रह करने लगे. मगर हिजड़े जिद पर अड़ गए कि कम से कम 50 हज़ार और दो.
सपना के पति ने हाथ जोड़ दिए मगर तब तक उस के ससुर दौडतेभागते कहीं से रूपए लाने चले गए. इतने समय में ही हिज़ड़ों ने अपनी जात दिखानी शुरू कर दी. वे ऐसा बर्ताव करने लगे जैसे वे लोग रूपए उगाहने आये हों और मनमाफिक रूपए न मिलने पर तेवर दिखाना उन का अधिकार हो. यही नहीं उन्होंने यह चेतावनी भी दे डाली कि वे बददुआ दे देंगे. सारी खुशियां जल कर भस्म हो जाएंगी. घर वाले हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहे थे कि बख्स दो. ऐसा न करो.
ये भी पढ़ें- छोड़िए शरमाना खुल कर हंसिए
बच्चे के दादा हैरानपरेशान से आये और उन्होंने 50 हजार की गड्डी हिजड़ों के मुखिया के हाथों पर रख दी. उस का चेहरा खिल गया और शब्दों का चोला बदल गया. वह बड़े प्यार से बच्चे के सर पर हाथ फिराने लगा, ‘तेरा बेटा खूब पढ़ेगा, अफसर बनेगा, माँबाप की खूब सेवा करेगा. जा खुश रह. हम चलते हैं”, कह कर वे आँखों से ओझल हो गए. बूढ़े दादा की आँखें ख़ुशी से छलछला उठीं. आँखों में कृतज्ञता के भाव लिए उन्होंने हिज़ड़ों को विदा किया.
सवाल उठता है कि आखिर इन हिजड़ों से इतना डरने की क्या बात है. उन की बददुआ से इतना भयभीत होने की क्या जरुरत? समारोह में आये हजारों लोगों ने जब बच्चे के सुंदर भविष्य की कामना की, आशीर्वाद दिये तो 4 -5 हिजड़ों के श्राप से डरना कैसा? कोई उन्हें कुछ रूपए भी भला क्यों दे? घर में बच्चे ने जन्म लिया तो खुशियां मना रहे हैं. ये हिजड़े भला कौन होते हैं रंग में भंग डालने वाले? आखिर बिना किसी श्रम के उन्हें रूपए पाने का हक़ किस ने दे दिया?
क्या इन हिजड़ों के कहने भर से बच्चा अफसर बन जाएगा और माँबाप को निहाल कर देगा? क्या बच्चे का भविष्य हिजड़ों के शब्दों पर निर्भर है? वस्तुतः यह सब बेमतलब की बातें हैं. आज से 30 साल बाद क्या होगा यह देखने के लिए शायद बच्चे के दादा जीवित भी न बचें मगर मन को संतुष्टि देने के लिए इस तरह के अंधविश्वासों को हवा जरूर मिलती है.
समाज का तानाबाना मर्द और औरत से मिल कर बना है. लेकिन एक तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है. इस की पहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता. समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर, किन्नर या हिजड़े के नाम से जाना जाता है.
इन के कई नाम होते हैं. किन्नर, हिजड़ा और न जाने क्याक्या कहा जाता है. हमारे देश में इस समय 5 लाख से ज्यादा किन्नर रहते हैं. 2014 से इन को समाज में थर्ड जेंडर की श्रेणी में गिना जाने लगा. इस से पहले इन की न तो कोई पहचान थी और न ही कोई अधिकार. अभी भी इन के बलात्कार को हमारा कानून बलात्कार नहीं मानता.
क्यों डरते हैं लोग
ट्रैफिक पर जैसे ही बत्ती लाल होती है हाथ पसारे, तालियां बजाते हिजड़े जरूर आ धमकते है. भीख मांगने के इस पॉलिशड तरीके में वे दीनहीन बन कर रूपए नहीं मांगते बल्कि दादागिरी दिखा कर मांगते हैं. जबरदस्ती रूपए निकलवाते हैं. इंडिया गेट हो या सेंट्रल पार्क, बुद्धा जयंती पार्क हो या फिर कोई चौराहा, किन्नर हर जगह पैसे मांगते नजर आ जाएंगे. अगर किसी ने पैसे देने में आनाकानी की तो वे मूड खराब कर डालेंगे. शादी व बच्चे के जन्म पर घर में आने वाले किन्नरों की भी यही हालत है. आम आदमी इन के मांगने का ज़्यादा विरोध नहीं करता और चुपचाप पैसे निकाल कर इन के हाथों में पकड़ा देता है.
ऐसा करने के पीछे वजह वही डर है, हिज़ड़ों की बददुआ का डर. साथ ही सदियों से मन में बिठाया गया अन्धविश्वास. इस के पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है वो यह कि किन्नरों की जब हम कोई बात नही मानते है तो वे लोगो को अपने गुप्तांगो को दिखाने का प्रयास करते है. उन की अप्राकृतिक बनावट के कारण लोगो का मन खराब हो जाता है. जिस का मनोवैज्ञानिक असर कही न कही लोगों की निजी जिंदगी पर भी पड़ता है.
मुफ्तखोरी की आदत
सवाल उठता है कि अगर व्यक्ति अपना लिंग बदलना चाहता है या जन्म से ही उस के साथ इस तरह की शारीरिक कमी है तो इस का मतलब यह तो नहीं कि उस को यह अधिकार मिल गया कि वह मेहनत करना छोड़ दे. शरीफ लोगो को सार्वजानिक स्थलों पर पैसे न देने के नाम पर प्राइवेट जगहों पर हाथ लगाने, बददुआ देने या गालीगलौच करने का काम करे. जबरदस्ती रूपए वसूले.
इस तरह के लोग विदेशों में भी होते हैं मगर वहां तो ये ऐसे निठल्ले और बदतमीज नहीं होते. वे किसी के आगे हाथ भी नहीं फैलातें. उन मुकामों तक पहुंच कर दिखातें है जहाँ कोई मर्द भी नहीं पहुंच पाता. हिज़ड़ा होने का मतलब यह नहीं कि उन्हें ज़िन्दगी भर काम से आज़ादी मिल गयी है और वे जो चाहे वह कर सकतें हैं.
ये भी पढ़ें- मैं दोबारा किन्नर बन कर ही जन्म लेना चाहती हूं- नाज जोशी
1. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, वीर्य यानी स्पर्म की अधिकता से बेटा होता है और रज यानि रक्त की अधिकता से बेटी. अगर रक्त और वीर्य दोनों बराबर रहें तो किन्नर पैदा होते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है. दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पति हुई है.
2. इन का इतिहास बहुत पुराना है. इन का जिक्र महाभारत और उस,के बाद मुगलों की कहानियों में भी हैं.
3. ये ख़ुद को मंगलमुखी मानते हैं इसलिए ये लोग शादी, जन्म समारोह जैसे मांगलिक कामों में ही भाग लेते हैं. मरने के बाद भी ये लोग मातम नहीं मनाते बल्कि खुश होते हैं कि इस जन्म से पीछा छूट गया.
4. इन के समाज में नए सदस्य का आना कई तरीकों से होता है. अगर किसी के घर बच्चा पैदा होता है और उस बच्चे के जननांग में कोई कमी पायी जाती है तो उसे किन्नरों के हवाले कर दिया जाता है.
आगे पढ़ें- क्या है किन्नरों से जुड़ा दूसरा सच