रेटिंगः 3 स्टार

निर्माताः रौनी स्क्रूवाला, सिद्धार्थ रौय कपूर, किलियन केरविन, प्रियंका चोपड़ा और मधु चोपड़ा

निर्देशकः शोनाली बोस

कलाकारः प्रियंका चोपड़ा जोनस, फरहान अख्तर, जायरा वसीम और रोहित सुरेश श्रौफ

अवधिः दो घंटे 29 मिनट

‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रौ' जैसी बेहतरीन फिल्म की निर्देशक शोनाली बोस इस बार आयशा चौधरी की बायोग्राफिकल फिल्म लेकर आयी हैं. अपने जन्म से ही मौत से जंग लड़ने वाली मोटिवेशनल स्पीकर और किताब ‘माय लिटिल एपिफेनीज‘ की युवा लेखिका आयशा चौधरी जब तक इस संसार में रही, जिंदगी के इसी फलसफे को दुनिया में बांटती रही. जिसे फिल्मकार शोनाली बोस ने अति घुमावदार भावुकतापूर्ण कहानी के रूप में पेश किया है.

कहानीः

यह कहानी है पेशे से मेंटल हेल्थ थेरेपिस्ट अदिती चौधरी उर्फ मूस (प्रियंका चोपड़ा जोनस) की. जो कि अपने पति निरेन चौधरी उर्फ पांडा (फरहन अख्तर), बेटी आयशा चौधरी (जायरा वसीम) और बेटे इशान चौधरी उर्फ जिराफ (रोहित सुरेश श्रौफ) के साथ रहती है. बेटी आएशा फेफड़े से संबंधित बीमारी पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित होते हुए भी मोटीवेशनल स्पीकर है और 18 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्यु हो जाती है. जबकि बेटा इशान चौधरी संगीतकार है.

फिल्म की कहानी आयशा की बहादुरी की आवाज के माध्यम से बताई गई है, जो अपने माता-पिता के ‘‘यौन-जीवन‘‘ और अपनी बीमारी सहित अन्य जटिल पारिवारिक मामलों के बारे में बताती है.

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दिल्ली के चांदनी चैक में अदिती (प्रियंका चोपड़ा) और निरेन चौधरी (फरहान अख्तर) की तीसरी संतान के रूप में जन्मीं आयशा (जायरा वसीम) जन्म से ही एससीआईडी नामक रेयर इम्यून डेफिशियेंसी सिंड्रोम से ग्रस्त है, जिसमें छोटा से छोटा इंफेक्शन भी प्राणघातक साबित होता है, इसलिए मरीज बमुश्किल एक वर्ष तक जीवित रह पाता है. अदिती और निरेन इस जेनेटिक बीमारी के चलते अपनी पहली बेटी तान्या को उसके जन्म के छह माह बाद ही खो चुके थे. इसलिए इस बार वह आयशा की जिंदगी बचाने के लिए लंदन के अस्पताल की शरण लेते हैं. इलाज का खर्च वह लंदन के सनराइज रेडियो पर अपनी व्यथा सुनाकर चंदा एकत्र करके जुटाते हैं. आयशा का बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है और साथ में कीमोथेरैपी भी हेाती है. फिर आयशा के साथ अस्पताल में लंबे समय तक रहना है. मगर अपनी नौकरी बचाने व बड़े बेटे इशान के लिए निरेन दिल्ली वापस लौट जाते हैं पर कुछ समय बाद वह वापस लंदन आकर नौकरी करने लगते हैं.  कुछ सालों बाद आयशा को फेफड़े की बीमारी पल्मोनरी फाइब्रोसिस हो जाती है. अब अदिती अपनी बेटी को ज्यादा से ज्यादा समय तक जिंदा रखने और उसकी जिंदगी के हर पल को खुशियों से भर देने को ही अपना मकसद बना लेती है. कई घटनाक्रम घटित होते हैं. अदिती एक किताब ‘माय लिटिल एपिफेनजी’ भी लिखती है पर अंततः 18 वर्ष की उम्र में आयशा की मौत हो जाती है.

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