पति के व्यवसाय में बैंक के कर्ज से हो रही उन्नति को देख कर बहुत सी औरतें फूली नहीं समातीं पर वे यह भूल जाती हैं कि हमारे ये बैंक पिछले जमाने के साहूकारों से भी ज्यादा बेदर्द और लोगों को रिहायशी घर तक बेचने को मजबूर कर देते हैं. गत 30 अगस्त को दिल्ली के एक अखबार में इंडियन ओवरसीज बैंक, पटना, पंजाब नैशनल बैंक, हरिद्वार के नीलामी के विज्ञापन प्रकाशित हुए.

इन विज्ञापनों में जो संपत्ति नीलाम हो रही है, वह बेहद छोटी यानी ₹7-8 लाख से ले कर ₹30-40 लाख तक की और रिहायशी मकानों की है. हरिओम गल्ला भंडार, श्यामला हैंडलूम, श्यामा साड़ीज, यादें टे्रडर्स, त्रिदेव ट्रेडर्स जैसे छोटेछोटे व्यापारियों के घरों पर बैंक ने कब्जा कर लिया है और अब खुलेआम उन्हें नीलाम करा जा रहा है.

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लगभग हर कर्जदार के साथ एक औरत जुड़ी है, चाहे पार्टनर के रूप में या फिर संपत्ति मालिक के तौर पर. आप ने कालीसफेद फिल्मों के जमाने में औरतों को साहूकारों के पैर पकड़ते बहुत से रूलाने वाले दृश्य देखे होंगे. यही सीन दोहराए जा रहे हैं. अब साहूकार नहीं वह व्यक्ति बैंक मैनेजर है. सब बैंकों ने कर्ज की मूल राशि पर ब्याज जोड़ कर मोटी रकमें बना लीं जो आज के मंदी के दौर में बहुत भारी पड़ गईं.

हर व्यापार चले यह जरूरी नहीं और कर्ज देने वाला नुकसान उठाए यह भी गलत है. पर जब सैकड़ों नहीं हजारों व्यापारी बैंकों के चंगुल में कर्जदार फंसे नजर आएं तो लगता है कि कहीं कुछ गलत है.

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