आज प्रजातांत्रिक जंगल की राजधानी दुर्गति का मैदान छोटेबड़े सभी तरह के जानवरों से खचाखच भरा हुआ है. अभी भी दूरदूर से सभ्य और सुसंस्कृत जंगली जानवर बसों व ट्रकों में ठुंसे हुए चले आ रहे हैं और जाहिल तथा शहरी आदमियों की तरह बाकायदा धक्कामुक्की और गालीगलौज जारी है. आज की आमसभा की विशेषता है ‘शेर’ जो जंगल का प्रधानमंत्री होने के साथसाथ ‘राष्ट्रीय पशु’ भी है.

‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत पर अमल करते हुए ‘शेर’ राष्ट्रीय पशु का ताज स्वयं छोड़ कर गधों को सौंपने वाला है. शुरूशुरू में तानाशाह शेर जंगल में प्रजातांत्रिक प्रणाली के नाम से हिचकिचाया था मगर जब विशेषज्ञों ने उसे समझाया कि इस से फायदे ही फायदे हैं, फर्क सिर्फ इतना पड़ेगा कि लोग उसे ‘राजा’ के बजाय प्रधानमंत्री कहेंगे बाकी सबकुछ यथावत रहेगा, तब शेर मान गया और वह मजे में था. जब जनता भूख से रोती, शेर उस के हाथ में रोटी के बजाय लोकतंत्र का झुनझुना पकड़ा देता. प्रजा बेचारी बहल जाती, आराम से सो जाती और शेर का काम बन जाता.

शेर के न आने की वजह से आज की सभा शुरू नहीं हो पा रही थी जैसा कि हमेशा होता है. ऐसे समय में मंत्री देर से ही आते हैं. फिर चमचे माइक पर आ कर उन का आभार मानते हैं कि वे अपना कीमती समय निकाल कर पधारे. खैर, शेर आया और आते ही उस ने माइक संभाल लिया. पहले एक घंटे के भाषण के दौरान उस ने जनता को बताया कि वह कितना ‘महान’ है, अगले एक घंटे तक यह समझाया कि असल में वह इतना महान क्यों है, फिर एक घंटे तक सरकार की पिछले 40 साल की उपलब्धियां गिनाईं और उन्हें डराया कि उन की सरकार का न होना जंगल के लिए कितना खतरनाक था.

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