भारतीय परंपरागत हिंदू विवाह पद्धति में कुंडली मिलान को बहुत आवश्यक समझा जाता है. कई बार बहुत से योग्य युवक या युवतियां इसी कारण बड़ी उम्र तक अविवाहित रह जाते हैं, क्योंकि उन की कुंडली नहीं मिलती. कभीकभी तो 3-4 भाईबहनों वाले परिवार में यदि सब से बड़े बच्चे की कुंडली नहीं मिलती तो सभी की शादी में रुकावट आ जाती है. 

समाज में हमें अपने आसपास कई बेमेल दंपती भी सिर्फ कुंडली मिलान के कारण ही दिखते हैं. हमारे पड़ोस में एक सुशिक्षित युवक जो कि ऊंचे पद पर कार्यरत था, का विवाह एक कम पढ़ीलिखी युवती से इसलिए कर दिया गया, क्योंकि उन की कुंडली के 36 गुण आपस में मिलते थे, लेकिन विवाह के बाद दोनों का जीवन परेशानियों से घिर गया, क्योंकि बौद्धिक स्तर पर दोनों का कोई मेल  नहीं था.

इसी प्रकार कई बार उच्च शिक्षा प्राप्त किसी बुद्धिमान युवती का विवाह किसी मामूली युवक से इसलिए कर दिया जाता है कि दोनों की कुंडली बहुत अच्छी तरह मिल गई है.  भारतीय विवाह पूरी उम्र साथ निभाने की एक स्वस्थ परंपरा है, जिस से पैदा होने वाले बच्चे भी सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों को स्वयं ही अपना लेते हैं. यदि पतिपत्नी के बीच बौद्धिक समानता है तो परिवार का वातावरण भी सकारात्मक रहता है. ऐसे ही परिवार स्वस्थ समाज तथा स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं.  गौर से विचार किया जाय तो कुंडली मिलान के स्थान पर वरवधु की शैक्षिक योग्यता, रुचियों तथा विचारों का मिलान किया जाना चाहिए.

हमें इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि विश्व के अनेक देशों में जहां कुंडली मिलान नहीं होता वहां भी सफल वैवाहिक जीवन देखने को मिलता है.  एक समय ऐसा था जब समाज वैवाहिक रिश्तों के लिए पंडितों और विचौलियों पर निर्भर था. उस समय लोग शिक्षित नहीं थे तथा संचार माध्यमों का भी अभाव था. पंडित लोग एक गांव से दूसरे गांव आतेजाते रहते थे और अपने पास विवाह योग्य युवकयुवतियों की सूची रखते थे. वे घरघर जा कर कुंडली मिला कर रिश्ते करवाते थे. यह कार्य उन की आजीविका का मुख्य साधन था.  वर्तमान समय में युवकयुवतियां शिक्षित हैं. अपना व्यवसाय अथवा कैरियर स्वयं चुनते हैं. ऐसे समय में वे अपना जीवनसाथी भी अपनी योग्यता के अनुसार स्वयं चुन लेते हैं. बड़ेबुजुर्गों का यह कर्तव्य है कि वे उन के द्वारा पसंद किए गए जीवनसाथी से मिलें उस की जांचपड़ताल करें ताकि आने वाले समय में उन के साथ धोखाधड़ी न हो.

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