फिल्म ‘भेजा फ्राई’ से चर्चा में आने वाले एक्टर विनय पाठक थिएटर कलाकार, टीवी प्रेजेंटर और निर्माता है. उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था, जिसमें साथ दिया परिवार वालों ने. बिहार के रहने वाले विनय पाठक आज भी थिएटर में काम करना सबसे अधिक पसंद करते है. उन्होंने हर तरह की भूमिका निभाई है और आज भी नयी-नयी चुनौती लेना पसंद करते है. वे सामाजिक काम करते है, पर किसी से बताना पसंद नहीं करते. उनके हिसाब से हर व्यक्ति को अपने आसपास कुछ काम दूसरों के लिए करते रहना चाहिए. हॉट स्टार पर पहली फीचर फिल्म ‘छप्पर फाड़ के’ में वे मुख्य भूमिका निभा रहे है. उन्होंने अपनी जर्नी को गृहशोभा के साथ शेयर किया, आइये जाने उन्ही से.
सवाल-इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?
इस फिल्म की कहानी ख़ास है,जिसमें पुरुषसत्तात्मक परिवार की सोच को दिखाने की कोशिश की गयी है. नोट बंदी के बाद की परिस्थिति को मजाकिया ढंग से दिखाया गया है. असल में पैसे की चाहत सबको होती है, पर जब पैसे मिलते है, तो उसके साथ जिम्मेदारी नहीं आती.फिर परिस्थिति क्या होती है, उसकी कहानी है. मैंने इस तरह की कहानी में आजतक काम नहीं किया है.
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सवाल-किसी के जीवन में अगर ‘छप्पर फाड के’ कुछ मिल जाय, तो उसके फायदे और नुकसान क्या होते है?
जीवन में कोई भी चीज बहुतायत से मिलने पर उसके फायदे और नुकसान होते है. किसी भी अधिक चीज को व्यक्ति लेने के लिए कितना तैयार है, ये उसे समझने की जरुरत होती है. मसलन बरसात की बूंद भी जरुरत से अधिक गिरे, तो उसमें सम्हलना और सम्हालना दोनों मुशिकल होता है और उसके लिए व्यक्ति को ही तैयार रहना पड़ता है.
सवाल-आपने एक लम्बी जर्नी इंडस्ट्री में तय की है, कैसे इसे लेते है?
मैं अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूं, क्योंकि मैंने कभी किसी भी काम के लिए कोई प्लान नहीं किया था. प्लान करें भी, तो वैसा जिंदगी में होता नहीं है. अच्छी बात यह है कि मुझे हमेशा अच्छे लोगों का साथ मिला. शुरुआत मैंने रंगमंच के साथ किया. अभी भी मैं नाटकों में काम करता हूं. इससे मुझे अच्छे कलाकार दोस्त मिले. मुझे बहुत सीखने को मिला और मैं आगे बढ़ता गया.
सवाल-हंसी का सफ़र आपके जिंदगी में कबसे शुरू हुआ?
ये मुझे आजतक भी पता नहीं चल पाया कि ये कैसे शुरू हो गया. मैंने कभी कुछ क्रिएट नहीं किया. परिस्थिति के अनुसार होता गया. कॉमेडी वही है,जिसमें आप जो सोचते है, होता कुछ और है, जिससे दर्शकों और पाठकों को हंसी आती है.
सवाल-आपकी फिल्म ‘भेजा फ्राई’ बहुत अच्छी चली इसके बाद ‘भेजा फ्राई 2’ उतनी नहीं चली, फिल्मों के सफल होने में क्या ख़ास होता है? आप किसी फिल्म को चुनते समय किस बात का ध्यान रखते है?
सबसे महत्वपूर्ण होता है लेखक. कहानी को लिखने वाले और पटकथा लिखने वालों की प्रतिभा पन्नों पर सही ढंग से लिखकर नहीं आती है, तो कुछ भी कर लें फिल्म अच्छी नहीं बन सकती. स्क्रिप्ट अच्छी न होने पर बड़े से बड़े कलाकार होने पर भी फिल्म सफल नहीं होती.
सवाल-अब तक की फिल्मों में आपके दिल के करीब कौन-कौन सी फिल्में है?
दस विदानिया,भेजा फ्राई,जॉनी गद्दार,मिथ्या, पप्पू कांट डांस साला आदि सभी फिल्में मेरे दिल के करीब है. ये सभी अलग-अलग कहानियां है. आगे भी अच्छी कहानियां कहने का प्रयास करता रहता हूं.
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सवाल-एक्टिंग के अलावा और क्या करना पसंद करते है?
मैं थिएटर करता हूं, इसके अलावा समय मिले, तो लिखता और बहुत भ्रमण करता हूं. मेरा पहला प्यार ट्रेवल है, इसके बाद आर्ट आती है. मैंने कहानी लिखी है, उसकी फिल्म बनाने की इच्छा है.
सवाल-आपके यहां तक पहुँचने में परिवार का सहयोग कितना रहा है?
परिवार के सहयोग के बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ, ऐसे में मानसिक सहयोग सबसे अधिक जरुरी होता है, क्योंकि पैसे कम होते है. सामंजस्य हर जगह करनी पड़ती है. मेरे माता-पिता बहुत सपोर्ट किया है. उन्होंने कहा था कि तुम जिस क्षेत्र में जा रहे हो, मुझे पता नहीं और हम चाहे भी तो कुछ तुम्हारे लिए नहीं कर सकते,क्योंकि उस क्षेत्र के बारें में मेरी जानकारी कुछ भी नहीं है. अगर आप अपनी मंशा से इस क्षेत्र में जा रहे है, तो मैं पूरी तरह से आपको सपोर्ट करूंगा और वही मेरे लिए काफी था. माता-पिता अगर बच्चों के सपनों को सहयोग देते है, तो ये बहुत बड़ी बात होती है. अभी मेरी पत्नी और बच्चे भी सहयोग देते है.
सवाल- दिवाली कैसे मनाते आये है? व्यस्त दिनचर्या में अभी क्या मिस करते है?
दिवाली हर साल खुशियों के साथ मनाते है. मिस मैं अपने पिता को करता हूं, क्योंकि वे अब नहीं रहे. साल 2014 में उनका देहांत हो गया. हर बार दिवाली मैं मां, पत्नी और बच्चों के साथ मनाता हूं.
सवाल-गृहशोभा के लिए क्या संदेश देना चाहते है?
मुझे गृहशोभा हमेशा से पसंद है मेरी तीन बहने गृहशोभा और सरिता पढ़ती थी और मैं भी उनके साथ मिलकर इसे पढ़ लिया करता था. घर में और कोई मैगज़ीन पढ़ने की आज़ादी नहीं थी. कई बार वे मुझे डांटती थी, क्योंकि वे मंगवाया करती थी और मैं पढ़ने लगता था.
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