बचपन इतना खूबसूरत और प्यारा होता है कि उसे जिस सांचे में ढालो वो ढल जाता है. मां की कोख से निकलते वक्त बच्चे कली जैसे होते हैं और बाहर की दुनिया में आकर वो फूल जैसे खिल उठते हैं. लेकिन आज वक्त, समाज और दुनिया इतनी बेरहम होती जा रही है कि बच्चा मां की गोद से बाहर आने में घबराने लगा है. ये शब्द प्रद्युम्न हत्याकांड की दास्तान पर एकदम सटीक बैठता है.

दरअसल, पिछले दिनों दिल्ली एनसीआर के गुरुग्राम की स्कूल (रेयान इंटरनेशनल स्कूल) में हुई सात साल के बच्चे की मौत की घटना ने पूरे देश को सन्न कर दिया है. निर्भया गैंगरेप की घटना के सालों बाद राजधानी में किसी के दर्द की पुकार इस तरह से सुनाई दी है मानों चैन लूट सा गया है, सांसे थम सी गई है.

जहां इस खबर के आने के बाद प्रद्युम्न का परिवार सौ-सौ आंसू रो रहा है, वहीं बौलीवुड इंडस्ट्री भी सकते में है. इस खबर को सुनने के बाद सेंसर बोर्ड के प्रमुख और गीतकार पसून जोशी ने भी इस घटना पर मार्मिक कविता लिखी है. प्रसून जोशी ने फेसबुक पर ये दिल दहलाने वाली कविता शेयर की है.

इस कविता के जरिये उन्होंने मौत के उस मंजर को बयां किया है, जिससे 7 साल के प्रद्युम्न को गुजरना पड़ा. प्रसून जोशी की यह कविता आपके दिल को छू जाएगी और आपकी आंखें नम कर देगी.

पढ़ें प्रसून जोशी की कविता

जब बचपन तुम्हारी गोद में आने से कतराने लगे,
जब मां की कोख से झांकती जिन्दगी,
बाहर आने से घबराने लगे,
समझो कुछ गलत है.
जब तलवारें फूलों पर जोर आजमाने लगें,
जब मासूम आंखों में खौफ नजर आने लगे,
समझो कुछ गलत है. 
जब ओस की बूंदों को हथेलियों पर नहीं,
हथियारों की नोंक पर थमना हो,
जब नन्हें-नन्हें तलुओं को आग से गुजरना हो,
समझो कुछ गलत है.
जब किलकारियां सहम जायें
जब तोतली बोलियां खामोश हो जाएं
समझो कुछ गलत है.
कुछ नहीं बहुत कुछ गलत है
क्योंकि जोर से बारिश होनी चाहिये थी
पूरी दुनिया में
हर जगह टपकने चाहिये थे आंसू
रोना चाहिये था ऊपरवाले को
आसमान से फूट-फूट कर

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