बिना ब्रेक लिए देर रात तक काम करना, अमूमन नाश्ता न करना, फास्ट फूड जमकर खाना, लंच के दौरान साफ्ट ड्रिंक की बड़ी-सी बोतल गटकना और काम का तनाव भगाने के लिए नियमित अंतराल पर सिगरेट फूंकना एक तरह से आज की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है.
शुरुआत में सब ठीक-ठाक चलता है फिर धीरे-धीरे सीने में जलन, पेट फूलने जैसी समस्या आने लगती है और धीरे-धीरे यही छोटी समस्या बड़ी बीमारी का कारण बन जाती है.
यूनानी चिकित्सक हिपोक्रेट्स ने कहा है कि ‘सारी बीमारियां पेट से ही शुरू होती हैं.’ उन्होंने भले ही यह बात दो हजार साल से भी ज्यादा पहले कही हो, लेकिन हमें अब जाकर यह समझ में आना शुरू हुआ है कि वे कितनी पते की बात कह रहे थे.
क्या आप जानती हैं कि एक स्वस्थ वयस्क इन्सान की सिर्फ आंत में ही करीब 100 खराब बैक्टीरिया पाए जाते हैं. ये अलग-अलग किस्म के होते हैं और उनके हितों के बीच टकराव पैदा होने से हमारे शरीर में बीमारियां जन्म लेती हैं.
पिछले दो दशकों में हुई रिसर्च से पता चला है कि पूरी तरह स्वस्थ रहने के लिए आंतों का स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है. आंतों की सेहत पर हमारे दिनचर्या का जबरदस्त असर पड़ता है. ज्यादा कैलोरी वाले जंक फूड और शराब का अधिक सेवन, इसके अलावा हरी सब्जियां न खाने से पाचन तंत्र के रोगों का खतरा बढ़ जाता है और यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम पर बुरा असर डालता है. जिसके कारण हमारे शरीर में गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग, इरिटेबल बावेल सिंड्रोम, फंक्शनल डिस्पेप्सिया, मोटापा, लीवर में फैट जमना और पेप्टिक अल्सर जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है.
अक्सर तनाव में रहने से भी आपका हाजमा खराब हो सकता है. इसकी वजह से पूरे पाचन तंत्र में जलन होने होने के साथ पाचन नली में सूजन आ जाती है और इन सबका नतीजा यह होता है कि पोषक तत्वों का शरीर के काम आना कम हो जाता है.
लंबे समय तक जारी रहने पर तनाव की वजह से इरिटेबल बावेल सिंड्रोम और पेट में अल्सर जैसी पाचन संबंधी तकलीफें हो सकती हैं. जांच के लिए डाक्टरों के पास जाने वाले रोगियों की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि गैस्ट्रोइसोफेगल रीफ्लक्स (जीईआरडी) अब पाचन संबंधी सामान्य रोग बन गया है. इस रोग में सीने में जलन तो होती ही है, उल्टी की शिकायत भी होती है. इसके अलावा फेफड़े, कान, नाक या गले से सम्बन्धित भी कई तकलीफें हो जाती हैं. यह अगर लंबे समय तक रह गया तो एक नई अवस्था आ सकती है, जिसका नाम है बैरेट्स इसोफेगस और इसका अगर समय पर इलाज न किया गया तो इसोफेगस का कैंसर भी हो सकता है.
पेट की हल्की लेकिन बार-बार शिकायतें होने पर जीवनशैली में थोड़े-बहुत बदलाव खास तौर पर फायदेमंद हो सकते हैं. इनमें बिस्तर पर सिर ऊंचा रखकर सोना, तंग कपड़े न पहनना, वजन ज्यादा होने पर उसे घटाना, शराब और सिगरेट का इस्तेमाल कम करना, खुराक में बदलाव करना, भोजन के तुरंत बाद लेटने से बचना और सोते समय खाने से बचना शामिल है.
हाल के कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि शराब के साथ-साथ धूम्रपान का लीवर और पैंक्रियाज को नुकसान पहुंचाने में बहुत बड़ा हाथ है. पैंक्रियाज हर तरह के भोजन को पचाने वाला महत्वपूर्ण अंग है जबकि लीवर शरीर में भोजन के पचने के बाद उसके अवशोषण के लिए जरूरी है.
पित्ताशय में पथरी, शराब के अलावा चर्बी वाले लीवर के रोग और गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स जैसे आंतों के कई रोगों में मोटापे का भी हाथ है. पाचन संबंधी रोग शरीर में जगह न बना सकें, इसके लिए जरूरी है कि वजन जरूरत से ज्यादा न होने पाए. वजन न बढ़े, इसके लिए रेशे वाले साबुत अनाज, फल, हरी सब्जियां, कम चर्बी वाला गोश्त और उसी तरह के डेयरी उत्पादों के अधिक सेवन के साथ पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थो का सेवन करें.
एक ही बार में बहुत ज्यादा भोजन कर लेने से पाचन नली पर दबाव बढ़ सकता है. इसलिए ज्यादा बेहतर यह होगा कि दिन भर में नियमित अंतराल पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में भोजन करें.
हाजमे के मामले में अगर आपको लंबे समय तक या फिर गंभीर रूप से कोई समस्या महसूस हो तो बिना और किसी तरह की देर किए अस्पताल पहुंचना चाहिए और कंप्लीट हेल्थ चेकअप कराना चाहिए.