बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों, वहां के रहवासियों के साथ देश की संपदा को भी नुकसान पहुंचता  है. इतना ही नहीं, बाढ़ के चलते जलजनित और वैक्टर संबंधी बीमारियां पनपती भी हैं. इन में मलेरिया, डेंगू, बुखार, हैजा, हैपेटाइटिस ए और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां शामिल हैं.

बाढ़जनित बीमारियां

संक्रामक रोगों का फैलाव और प्रकोप बाढ़ आने के कुछ ही दिनों, सप्ताहों या महीनों के भीतर नजर आने लगता है. बाढ़ के दौरान और इस के बाद सब से आम है जलस्रोतों का प्रदूषण. ऐसे पानी के संपर्क में आने या इसे पीने के कारण जलजनित बीमारियां फैलने लगती हैं. इन में मुख्य हैं- दस्त और लैप्टोस्पायरोसिस. इस के अलावा खड़े पानी में मच्छरों को प्रजनन करने और पनपने का मौका मिलता है. इस प्रकार से वैक्टरजनित रोग फैलते हैं, जैसे कि मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया.

बाढ़ के बाद जो रोग एक महामारी का रूप ले सकता है वह है लैप्टौस्पायरोसिस. चूहों की संख्या में वृद्धि से कीटाणुओं का विस्तार होता है. चूहों के मूत्र में बड़ी मात्रा में लैप्टोस्पाइरा होते हैं जो बाढ़ के पानी में मिल जाते हैं. इस के अलावा, घटते जल स्तर के साथ मच्छरों की वापसी भी हो जाती है.

स्थिति से कैसे निबटें

बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए प्रशासनिक और व्यक्तिगत दोनों स्तर पर काम किया जाना चाहिए. प्रशासनिक स्तर पर जरूरी है कि प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल और सेवाएं दुरुस्त रहें. स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों को सही प्रकार से प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे किसी भी खतरे की स्थिति में सक्रिय हो कर कारकों की पहचान व आकलन कर सकें और तत्काल उचित कार्यवाही कर सकें. स्वच्छता और हाथ धोने के सही तरीकों के बारे में जनता को जागरूक किया जाना चाहिए. प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पीडि़तों को रोगों से सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पेयजल, सफाई की सुविधाएं और जरूरत पड़ने पर शरण लेने के उपयुक्त ठिकाने मुहैया रहें.

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