लं बा कद, गोरा रंग, सलीके से   बंधा हुआ जूड़ा, कलफ लगी बढि़या सूती साड़ी और साड़ी के रंग से मेल खाते गहने पहने मिसेज चोपड़ा पूरे दफ्तर में अलग ही दिखती थीं. मैं जिस दफ्तर में काम करती थी वहां काम कम ही होता था. यों समझ लीजिए, अकसर लोग गरमगरम चाय और गरमागरम बहस से टाइम पास करते थे. कुछ ही दिनों में दफ्तर का यह माहौल देखदेख कर मेरा धैर्य जवाब दे गया.

मैं ने अपने एन.जी.ओ. के कोआर्डिनेटर से एक दिन बातों ही बातों में पूछ लिया, ‘‘यह मिसेज चोपड़ा मुझे आफिस में सब से अलग दिखती हैं, यह कैसा काम करती हैं. मैं अभी नई हूं इसलिए इन के बारे में ज्यादा जानती नहीं हूं.’’

सामने बैठे मिस्टर शर्मा बोले, ‘‘यह यहां पी.आर.ओ. के पद पर हैं. पब्लिक और प्रेस से डीलिंग करना ही इन का काम है. यह किसी मजबूरी में नौकरी नहीं कर रही हैं. मिसेज चोपड़ा जैसी हाइक्लास सोसाइटी की औरतें जब अपनी किटी पार्टियों से बोर हो जाती हैं और उन्हें अपना समय बिताना होता है तो वे किसी एन.जी.ओ. से जुड़ जाती हैं. समय भी बीत जाता है, नाम भी मिल जाता है. मिसेज चोपड़ा भी इसी रंग में रंगी हैं.’’

मैं थोड़ी देर में अपनी जगह पर वापस आ कर काम में जुट गई. चूंकि मेरे ऊपर अपनी विधवा मां की जिम्मेदारी थी इसलिए मैं अपना काम बड़ी ईमानदारी से करती थी. मैं कुछ दिनों से यह भी अनुभव कर रही थी कि मिसेज चोपड़ा मुझे पसंद नहीं करती हैं. मेरे हर काम में उन्हें सिर्फ कमी ही नजर आती थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...