‘‘अमांयार क्यों मुंह लटकाए बैठे हो?  जाओ ऐश करो, तुम्हारी दिलरुबा जल्द ही तुम्हारी बेगम बनने जा रही. क्या तकदीर लिखवा कर लाए हो ऊपर वाले से,’’ रमेश जब भी चुहल करता तो लखनवी अंदाज में बात शुरू कर देता.

विजय उदास स्वर में बोला, ‘‘अभी तेरी शादी फिक्स नहीं हुई है न इसीलिए तू मेरा दर्द नहीं सम झ सकता.’’

‘‘क्या मतलब? मैं सचमुच कुछ नहीं सम झा. हम ने तो यही सुना था मियां, प्रेम विवाह फिक्स करने में लोगों के पसीने छूट जाते हैं. मगर तुम्हारी तो महीनेभर बाद ही सगाई और अगले 6 महीने बाद शादी है...’’

तभी विजय के मोबाइल पर मैसेज उभरा ‘फ्री हो?’ विजय अपनी बातचीत को अधूरा छोड़ कर उठ खड़ा हुआ.

विजय और रश्मि दोनों ही कालेज से एकदूसरे को बहुत पसंद करते हैं, यह बात सभी सहपाठियों ने बीटैक प्रथम वर्ष में ही नोटिस कर ली थी, जिस का इन दोनों ने भी कभी छिपाने का प्रयास नहीं किया. हालांकि विजय ब्राह्मण परिवार से और रश्मि वैश्य परिवार से थी. फेयरवैल पार्टी के दिन तो सहपाठियों ने नाटकीय शादी भी करवा दी थी, जिस का इन दोनों ने कोई विरोध भी नहीं किया था. तब ये सोच रहे थे कि असल विवाह तो हो न पाएगा नकली ही सही. मगर समय ने दोनों को वापस एक ही कंपनी के औफिस में ला कर खड़ा कर दिया. एकसाथ एक ही समय में समान प्रोजैक्ट में काम कर रहे थे. सोई भावनाओं ने फिर सिर उठाना शुरू कर दिया. काफी सोचविचार कर दोनों ने यह निर्णय लिया कि घर वालों से इस विषय में चर्चा कर राय ले ली जाए, फिर आगे की सोचेंगे.

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