बचपन में होश संभालने के बाद पंकज ने बूआ के मुंह से यही सुना था कि ‘यह तुम्हारी मम्मी की तसवीर है. इसे प्रणाम करो’ और अब 3 साल का पंकज पूजा के कमरे में आ कर आले में रखी अपनी मां की तसवीर को एकटक देखता रहता. कभीकभी वह बूआ की गोद में चढ़ कर तसवीर पर हाथ भी फेर लेता.

पहले वह तसवीर पंकज के पिता शिवानंद के कमरे में टंगी थी क्योंकि इस के साथ उन की कुछ यादें जुड़ी थीं. कभी चित्र की नायिका ने शिवानंद से कहा भी था, ‘अब तो मैं सशरीर यहां रहती हूं. तब मेरा इतना बड़ा चित्र क्यों लगा रखा है? अब तो मैं वधू भी नहीं रही, एक बच्चे की मां बन चुकी हूं.’

शिवानंद ने तब हंसते हुए कहा था, ‘क्या करूं मेरी आंखों में तुम्हारा वही रूप समाया हुआ है.’

‘हमेशा पहले जैसा तो नहीं रहेगा,’ रश्मि बोली, ‘अब तो रूप बदल गया है.’ ‘नहीं, रश्मि. हम बूढे़ हो जाएंगे तब भी तुम ऐसी ही याद आती रहोगी,’ शिवानंद भावुक हो कर बोले, ‘पहली झलक यही तो देखी थी.’

यह सच था कि विवाह से पहले शिवानंद और रश्मि ने एक दूसरे को देखा नहीं था. रश्मि को परिवार के दूसरे लोगों ने देखा और पसंद किया. तब जयमाला की रस्म होती नहीं थी. विवाह के समय सबकुछ इतना दबादबा हुआ था कि चाह कर भी शिवानंद पत्नी को देख नहीं सके. विवाह कर घर लौटे तो अपने कमरे में टंगे चित्र में पत्नी को पहली बार देखा तो देखते ही रह गए. इस चित्र को उन के छोटे भाई सदानंद  ने खींचा था और बड़ा करा कर भाई के कमरे में लगा दिया था.

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