भारत में गोल्ड में इन्वेस्टमेन्ट करना एक लोकप्रिय विकल्प है, यह न केवल धनवान व्यक्तियों वरन सभी आयवर्ग के व्यक्तियों में लोकप्रिय है. किसी भी अन्य निवेश के समान ही गोल्ड में भी कुछ जोखिम होते हैं. यह अच्छी बात है कि थोड़ी सावधानी से इन्हें दूर किया जा सकता है. जब भी आप गोल्ड खरीदें, तब इन बातों को जरूर ध्यान रखें जिससे आपका निवेश सुरक्षित और सही हो.
शुद्धता
शुद्ध गोल्ड एकदम नरम होता है और इसे ज्वेलरी या बार बनाने के लिये इस्तेमाल नही किया जा सकता, यही कारण है कि उसे किसी अन्य धातु के साथ मिलाया जाता है. जैसे सिल्वर, निकल या कौपर जिससे इसमें कडापन आता है. गोल्ड के इसी अनुपात पर अर्थात इसमें किस अनुपात तक ये दूसरे धातु मिले हुए है, गोल्ड के विविध कैरेट संबंधी प्रकार प्रचलित होते हैं जैसे 18 कैरेट, 22 कैरेट और 24 कैरेट.
यह सुनिश्चित कर लें कि आप जितना पैसा दे रहीं हैं, उसका मूल्य आपको मिल रहा है. यदि आप किसी स्थानीय ज्वेलर से खरीद रही हैं, तब गोल्ड की प्योरिटी की जांच करना थोडा मुश्किल हो सकता है. बहरहाल अब आपकी इस समस्या का समाधान हो सकता है यदि आप ब्रान्डेड स्टोर से गोल्ड खरीदें जो कि बेची जा रही गोल्ड ज्वेलरी की प्योरिटी का सर्टिफिकेशन देते हैं. अधिकांश ब्रान्डेड स्टोर्स में कुछ मशीनें होती हैं जैसे कैरेट मेजर आदि जिसकी मदद से वे गोल्ड की प्योरिटी की जांच कर सकते हैं.
विश्वसनीयता
खरीददारों को सर्टिफिकेशन संबंधी संस्थाओं के बारे में भी जानकारी होनी चाहिये जिससे किसी प्रकार की ठगी न हो. भारत में गोल्ड के आभूषण जिनमें कौईन्स और बार्स भी शामिल है, का सर्टिफिकेशन, ब्यूरो औफ इन्डियन स्टैन्डर्ड्स (बीआईएस) द्वारा किया जाता है जिसमें हौलमार्क दिया जाता है, वह गोल्ड जो बीआईएस हौलमार्क के साथ होता है, उसे विश्वसनीय माना जाता है.
वैसे देखा जाए तो हौलमार्क की गई और सर्टिफाईड ज्वेलरी थोडी महंगी होती है लेकिन प्योरिटी स्टैम्प के साथ विश्वसनीयता की पूरी गारंटी खरीददार को मिलती है कि उन्हे अपने पैसे का पूरा मूल्य मिल रहा है.
मूल्य
गोल्ड ज्वेलरी के मूल्य में इसके मेकिंग चार्जेस भी लगे होते हैं. यह वह लागत होती है जो ज्वेलर्स द्वारा ज्वेलरी की डिजाईन बनाने में लगती है, यही कारण है कि डिजाईन में जितनी बारीकी होती है, उतने ही मेकिंग चार्जेस ज्यादा होते हैं.
स्टोरेज
सुरक्षा के कारणों से, गोल्ड को हमेशा बैंक के लौकर में रखा जाना चाहिये और गोल्ड खरीदते समय लौकर के किराये की लागत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये. वैसे देखा जाए तो इस संबंध में कोई तय नियम नही होते हैं लेकिन बैंकों द्वारा यह आवश्यकता दिखाई जाती है कि वे आपको लौकर दें इससे पहले आपके द्वारा वहां पर कोई फिक्स्ड डिपौजिट करना या बचत खाता खोलना जरुरी होता है. बहरहाल यह प्रत्येक बैंक के आधार पर अलग अलग होता है, इसलिये इस बारे में पहले से जानकारी ले लेना अच्छा होता है. इसके साथ ही लौकर के नियमित इस्तेमाल के लिये सालाना शुल्क भी लागू होता है.
पुन: बेचना
यह सुनिश्चित करने के लिये कि आपको बेचने के दौरान अपनी गोल्ड ज्वेलरी का पूरा पूरा मूल्य मिल सके, आपको खरीद के समय मिला हुआ शुद्धता का प्रमाण पत्र और खरीदी की रसीद को सम्भालकर रखना बहुत ज्यादा जरुरी होता है, इसके बिना रिसेल के दौरान आपको सही मूल्य मिल पाने की संभावना कम हो जाती है.
बैंकों के पास गोल्ड कौईन और बार्स बेचने के अधिकार होते हैं परंतु आरबीआई के निर्देशों के अनुसार बैंक गोल्ड को फिर से खरीद नही सकती. स्थानीय या ब्रान्डेड ज्वेलरी स्टोर कौईन या बार्स अथवा ज्वेलरी को खरीदते हैं परंतु इस दौरान खरीदी के दौरान की रसीद और प्रमाण पत्र आपको सबसे ज्यादा रीसेल मूल्य दिलवाने में मदद करते हैं.